Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 10
________________ विषयानुक्रमाणिका प्रस्तावना कर्मसिद्धान्त का पर्यालोचन जगत के मूलपदार्थ | विकार का कारण कर्म-शब्द के वाचक विभिन्न शब्द । कर्म विपाक के विषय में विभिन्न दर्शनों का मन्तव्य । कर्मसिद्धान्त पर आक्षेप और परिहार । आत्मा का अस्तित्व सात प्रमाण । आत्मा के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य । कर्म का अनादित्व | अनादि होने पर भी कर्मों का अन्त सम्भव है | आत्मा और कर्म में बलवान कौन ? कर्म सिद्धान्त का अन्य शास्त्रों से सम्बन्ध । कर्म सिद्धान्त का साध्य प्रयोजन । कर्म सिद्धान्त विचार ऐतिहासिक समीक्षा | जैनदर्शन में कर्मसिद्धान्त का विवेचन जैनदन का विवेचन | जैनदर्शन का विश्व सम्बन्धी दृष्टिकोण । कर्म का लक्षण | भावकर्म और द्रष्पकर्म का विशेष विवेचन चार बन्ध का वर्णन । कर्म की विविध अवस्थाएँ 1 बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता का स्पष्टीकरण । कर्मक्षय की प्रक्रिया, कर्मक्षय करने के साधन । जैनदर्शन में कर्म तत्व विषयक विवेचना का सारांश | भारतीय दर्शन साहित्य में कर्मवाद का स्थान । जैन दर्शन में कर्मवाद का स्थान 1 मौलिक जैन कर्म साहित्य जैन कर्म साहित्य के प्रणेता । क्रर्मशास्त्र का परिचय । कर्मविपाक ग्रन्थ : ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार का परिचय | I गाथा १ मंगलाचरण एवं अभिधेय 'सिरि वीर जिण' पद की व्याख्या कर्म की परिभाषा जीव और कर्म का सम्बन्ध 98-50 पृष्ठ १-८ १

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