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गुरुदेव के निर्देशन में उन्होंने अत्यधिक श्रम करके यह विद्वत्तापूर्ण तथा सर्वसाधारण जन के लिए उपयोगी विवेचन तैयार किया है। इस विवेचन में एक दीर्घकालीन अभाव की पूर्ति हो रही है। साथ ही समाज को एक सांस्कृतिक एवं दार्शनिक निधि नये रूप में मिल रही है, यह अत्यधिक प्रसन्नता की बात है ।
मुझे इस विषय में विशेष रुचि है । मैं गुरुदेव को तथा संपादक बन्धुओं को इसकी संपूर्ति के लिए समय-समय पर प्रेरित करता रहा । यह प्रथम भाग आज जनता के समक्ष आ रहा है, इसकी मुझे हार्दिक प्रसन्नता है ।
-सुकन मुनि