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कर्मबन्धों की विविधता एवं विचित्रता ।
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संसार-महायंत्र को बाँधे रखते हैं बंध लोहे के विविध सामान का उत्पादन करने वाली भारी भरकम बड़ी मशीन में हजारों कल-पुर्जे लगे रहते हैं। उसमें कई अत्यन्त छोटे नट, बोल्ट, कीलें तथा पुर्जे भी होते हैं और कई बडे-बड़े लोहे के स्प्रिंग, हेंडल आदि औजार भी उस मशीन में लगे रहते हैं। ये सब कल-पुर्जे, नट, बोल्ट, हेडल, स्प्रिंग आदि सब उस बड़ी मशीन (महायंत्र) को बांधे रहते हैं। यदि ये या इनमें से एक भी कल-पुर्जा आदि न हो तो वह मशीन ठप्प हो जाएगी, चलेगी नहीं।
विविध कर्मबन्ध : संसारमहायंत्र को बांधे रखने वाले . इसी प्रकार संसारस्थ जीवों का एकमात्र आधार संसार है। उस संसार रूपी महायंत्र में कर्मबन्धरूपी अगणित कलपुर्जे लगे हुए हैं, जो संसार को बांधे हुए हैं, टिकाये हुए हैं। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इन पांच आस्रवों रूपी विद्युत् तारों से वह संसाररूपी मशीन बंधती है। उसमें भी अगणित बन्ध लगे हुए हैं। कोई छोटा है, कोई बड़ा है। कोई बन्ध घात्य है तो कोई अघात्य है। कोई पुण्यरूप है तो कोई पापरूप है। कोई बन्ध पुद्गलादि के विपाक को लेकर हुआ है, तो कोई बंध परावर्तमाना प्रकृतियों का है, तो कोई अपरावर्तमाना प्रकृतियों का है। साथ ही, बन्ध के विविध अध्यवसायों, कारणों, मिथ्यात्व आदि हेतुओं, बंध के बीज : राग-द्वेष, मोह, कषाय आदि बन्ध के मूल, आदि भी उसी संसार-महामंत्र को बांधे रखने, बार-बार बांधने में अग्रगण्य हैं। साथ ही संसार के महायंत्र का बन्ध आकृति से न दिखाई देने पर भी संसार में उसके कारण होने वाले सुफल-दुष्फलों का, जन्म-जरा-मृत्यु-व्याधि आदि दुःखों का अवलोकन तथा अनुभव प्रायः प्रत्येक व्यक्ति करता है।
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