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(८) __ जैन दर्शन कर्म विज्ञान के सहारे सूक्ष्म समाधान तक पहुँचा है। प्राणी के एक या दो जन्म तक नहीं, किंतु सैंकड़ों हजारों पूर्वजन्मों तक कर्म संस्कारों को खोजता रहा है और उस विज्ञान के आधार पर उसकी हर गति-मति का समाधान भी दिया गया
जैन धर्म का कर्म विज्ञान इतना सूक्ष्म और इतना सटीक है, इतना तर्कसंगत और व्यावहारिक है कि यह सिद्धान्त अगर विज्ञान के हाथ में पहुंच गया होता तो. आज वह मानव जीवन की अनेक गूढ़ पहेलियां सुलझा देता और संसार को "कर्म" के बंध और परिणाम (फल) से अवगत कराकर शायद उसे इतने घोर दुराचार से कुछ हद तक रोक भी सकता था। जिस धर्म और अध्यात्म के पास कर्म-सिद्धान्त जैसा विज्ञान है, उसके पास प्रयोग, पर्यवेक्षण, अनुसन्धान जैसे विकसित साधन नहीं हैं। इसलिए कर्म-विज्ञान आज सिर्फ धार्मिक सिद्धान्त बनकर रह गया है। __ मैंने बचपन से ही कर्म शास्त्र को पढ़ा है। अनेक गुरु गंभीर ग्रंथों का परिशीलन भी किया है। जैन धर्म की सचेलक तथा अचेलक परम्परा में कर्म सिद्धान्त पर बहुत ही सूक्ष्म, बहुत ही गहराई से चिन्तन-मनन और अध्यात्म अनुभव किया गया है और मनुष्य जीवन की प्रत्येक समस्या को कर्म-विज्ञान की दृष्टि से देखकर उसका तर्क-संगत समाधान भी दिया गया है। अगर हम कर्म-साहित्य को पढ़ेंगे तो अपनी हर समस्या का समाधान स्वयं खोजने में कुशल हो जायेंगे। - प्रायः हम अपने सुख-दुःख का दोष परिस्थितियों के मत्थे मढ़ देते हैं, या किसी दूसरे के गले बांधकर उसे कोसते हैं, गालियां देते हैं और मन में क्रोध, रोष, द्वेष, अनुताप, पश्चात्ताप, मोह और ममत्व से संत्रस्त होते रहते हैं। कर्म-विज्ञान हमें इस संकट से उबारता है वह एक ही सशक्त और सम्पूर्ण समाधान देता है-अत्त कडे दुक्खे ! णो परकडे।
तुम्हें जो दुःख हैं, चिन्ताएं, तनाव हैं, संकट और संत्रास के कारण हैं वे किसी दूसरे के खड़े किये हुए नहीं, उनका कारण तुम्हारी अपनी ही भावनाएं, प्रवृत्तियां
और वृत्तियां रही हैं। तुम सिर्फ वर्तमान को देखते हो इसलिए दुःखी हो, अतीत में झांकने की चेष्टा करो, इन दुःखों का कारण समझ में आ जायेगा। दुःख का कारण समझ में आने पर उसका निवारण भी किया जा सकेगा। इस प्रकार कर्म-सिद्धान्त हमें बाहर से भीतर, वर्तमान से अतीत में ले जाता है। अन्तर्मुखी बनाता है। अपने दुःखसुख की जिम्मेदारी स्वयं पर डालता है और स्वयं ही उसे समाधान करने का मार्ग बताता है। उसके फल या परिणाम भुगतने के समय शान्त और संतुलित रहना सिखाता है।
कर्म-विज्ञान पुस्तक के पिछले तीन भागों में मैंने कर्म के स्वरूप, कर्म का अस्तित्व, कर्म का आत्मा के साथ सम्बन्ध, शुभकर्म-पुण्य, अशुभकर्म-पाप, कर्म का
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