Book Title: Karm Vignan Part 04
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 10
________________ स्वकीय अनेक प्रश्नों का एक उत्तर : कर्म-विज्ञान संसार की विचित्र स्थितियों को देखकर मन में एक कुतूहल जगता है। संसार में इतनी विभिन्नता/इतनी विचित्रता क्यों है ? प्रकृति के अन्य अंगों को छोड़ देवें, सिर्फ मनुष्य जाति पर ही विचार करें तो हम देखेंगे, भारत के ८८ करोड़ मनुष्यों में कोई भी दो मनुष्य एक समान नहीं मिलते। उनकी आकृति में भेद है, प्रकृति में भेद है। कृति, मति, गति और संस्कृति में भी भेद है ? विचार और भावना में भेद है। तब प्रश्न उठता है, आखिर यह भेद या अन्तर क्यों है ? किसने किया है ? इसका कारण क्या है ? प्रकृतिजन्य अन्तर या भेद के कारणों पर वैज्ञानिकों ने बड़ी सूक्ष्मता और व्यापकता से विचार किया है और उन्होंने एक कारण खोज निकाला - हेरिडिटी(Heredity) वंशानुक्रम । वैज्ञानिकों का कहना है- हमारा शरीर कोशिकाओं द्वारा निर्मित है। एक कोशिका ( एक सेल) कितना छोटा होता है, इस विषय में विज्ञान की खोज है-एक पिन की नोक पर टिके इतने स्थान पर लाखों लाख कोशिकाएं हैं। कोशिकाएं इतनी सूक्ष्म हैं। उन सूक्ष्म कोशिकाओं में जीवन रस है । उस जीवन रस में जीवकेन्द्र - न्यूक्लीयस (Nucleus) है। जीव केन्द्र में क्रोमोसोम (Chromosomes ) गुणसूत्र विद्यमान हैं। उनमें जीन (जीन्स - Genes) हैं। जीन में संस्कार सूत्र हैं। ये जीन (Genes) ही सन्तान में माता-पिता के संस्कारों के वाहक या उत्तराधिकारी होते हैं। एक जीन जो बहुत ही सूक्ष्म होता है, उसमें छह लाख संस्कार सूत्र अंकित होते हैं। इन संस्कार सूत्रों के कारण ही मनुष्य की आकृति, प्रकृति, भावना और व्यवहार में अन्तर आता है। इस वंशानुक्रम विज्ञान (जीन सिस्टमोलोजी) का आज बहुत विकास हो चुका है। यद्यपि वंशानुक्रम के कारण अन्तर की बात प्राचीन आयुर्वेद एवं जैन आगमों में भी उपलब्ध है। आयुर्वेद के अनुसार पैतृक गुण अर्थात् माता-पिता के संस्कारगत गुण सन्तान में संक्रमित होते हैं। भगवान महावीर ने भी भगवती तथा स्थानांग सूत्र में जीन को मातृ अंग-पितृ अंग के रूप में निरूपित किया है। इसलिए आधुनिक विज्ञान की वंशानुक्रम-विज्ञान की खोज कोई नई बात नहीं है। मारवाड़ी भाषा का एक दूहा प्रसिद्ध है बाप जिसो बेटो, छाली जिसो टेटो, घड़े जिसी ठिकरी, मां जिसी दीकरी । यह निश्चित है कि माता-पिता के संस्कार सन्तान में संक्रमित होते हैं, और वे मानव व्यक्तित्व के मूल घटक होते हैं। परन्तु देखा जाता है, एक ही माता-पिता की दो (६) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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