Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot

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Page 420
________________ श्रीकल्प कल्प सूत्रे मञ्जरी ॥४०९॥ टीका छुटयत इति, लोके जीवा असुनकर्मबन्धनेन दुक्ख, शुभकर्मषन्धनेन सुख प्राप्ता दृश्यन्ते, सकलकर्मच्छेदेन जीवो मोक्षं प्राप्नोतीति प्रसिद्धम् । अनादिबन्धो न छुटयते, इति यत्वया कथितं तदपि मिथ्या। यतो का लोके सुवर्णस्य मृत्तिकायाश्च योऽनादिः सम्बन्धः स छुट्चत एव । तव शास्त्रेऽप्युक्तम्-"ममेति बध्यते जन्तुनिर्ममेति प्रमुच्यते ॥” इत्यादि । पुनरपि "मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं, मुक्त्यै निर्विषयं मनः" ॥१॥ इत्यादि। अतः सिद्धं जीवस्य बन्धो मोक्षश्च भवतीति । एवं श्रुत्वा विस्मितश्छिन्नसंशयः प्रतिबुद्धो मण्डिकोपि अर्द्धहै तो वह कभी छूटना नहीं चाहीये, क्यों कि यह कहा गया है कि 'जो अनादि होता है, वह अनन्त होता मार है।' अगर बाद में उत्पन्न हुआ तो कब उत्पन्न हुआ? और कैसे छूटता है ? यह मत मिथ्या है, क्यों कि __ लोक में जीव अशुभ कर्म-बंध से दुःख को और शुभ कर्म-बंध से सुख को प्राप्त करते देखे जाते हैं। यह भी प्रसिद्ध है कि समस्त कर्मों का नाश होने से जीव मोक्ष प्राप्त करता है। अनादि बंध छूटता नहीं, ऐसा तुमने कहा सो भी मिथ्या है, क्यों कि लोक में स्वर्ण ओर मृत्तिका का जो अनादि संबंध है, वह छूटता ही है। “ममेति वध्यते जन्तुनिर्ममेति प्रमुच्यते " इति । अर्थात्-“ममत्व के हा कारण जीव को बन्धन होता है और ममता से रहित जीव मोक्ष पाता है" इत्यादि और भी कहा है "मन एव मनुष्याणां, कारणं बन्धमोक्षयो। बन्धाय विषयासक्तं, मुक्त्यै निर्विषयं मनः" ॥१॥ આવે તે આ “બને અનાદિ માનવ પડે, તે તેને અંત હોઈ શકે નહિ. કારણ કે જે બાબત અનાદિ હોય, તે અનન્ત હોવી જોઈએ. અગર જીવને બંધ આદિવાળે માને છે, કયારે બંધની ઉત્પત્તિ થઈ? તેમજ તે કયારે અને કેવી રીતે છૂટી શકે? ઉપર પ્રમાણેને તારે મત પ્રવતી રહ્યો છે પરંતુ તે મત મિથ્યા છે. કારણ કે સંસારમાં જે સુખ ભગવે છે. તે શુભ કમને બંધ છે; અને દુખ ભોગવે છે, તે પાપ કમ (અશુભ) બંધ છે, અને આ સમસ્ત શુભાશુભ કમનો નાશ થતાં, જીવ મુકત થાય છે. ને મોક્ષની પ્રાપ્તિ કરે છે. તે કહ્યું કે, અનાદિબંધ છૂટે નહિ, તે પણ ખાટું છે. કારણ કે આ જંગતમાં. કંચન અને માટીને સંયોગ અનાદિન છે; છતાં તે છૂટી જાય છે; તે “કામ” ५५ द्रव्यती सूक्ष्म २०४ छ, भाटे ते नये. भूगभूत वात छे , “ममेति बध्यते जन्तु निर्ममेति प्रमुच्यते" ना ममत्व मापने सीप थाय छ; अने भभव भाव edi सपने मोक्ष थाय छे. yang 3 मण्डिकस्य बन्दमोक्षविषय संशयनिवारणम् । मू०१११॥ છે ॥४०९॥ Jain Education For Private & Personal Use Only Mwww.jainelibrary.org

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