Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot

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Page 445
________________ श्रीकल्प कल्पमञ्जरी ॥४३४॥ टीका प्रभासस्य निर्वाण विषय अपरं चेति द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये-ब्रह्मद्वयं ज्ञातव्यमिति । तत् द्विविधे ब्रह्मणि यत् परं ब्रह्म तत् सत्य-ज्ञानानन्तस्वरूपम् । तदुक्तं वेदे-"सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म" इति । यदि जीवस्य मोक्षो न स्यात्तदा तस्य सत्यज्ञानानन्तस्वरूपमाप्तिरपि न स्यात् । ततश्च तव प्रमाणत्वेनाभिमतानां वेदानां वचनं कथं संगच्छेत ? अनेन वेदवचनेन तु मोक्षस्य सत्ता सिध्यति । अतः सिद्धं मोक्षोऽस्तीति । एवं प्रभोर्वचनं श्रुत्वा छिन्नसंशयः स प्रभासोऽपि त्रिशतशिष्यैः सह प्रभुपाचे प्रवजितः ॥११॥ सकता। इस वाक्य में तो यह प्रतिपादित किया गया है कि अग्निहोत्र जरा-मरण के अन्त का कारण नहीं, प्रत्युत जरा-मरण का कारण है। इस में ध्यान, अध्ययन, तपश्चरण आदि कारणों से होनेवाले जरा-मरण के अभाव रूप मोक्ष का निषेध नहीं किया गया है। अग्निहोत्र आरंभ-समारंभ एवं हिंसाजनित तथा स्वर्ग और वैभव आदि की कामना से प्रेरित अनुष्ठान है, एत एव उसे जरा-मरण का जो कारण कहा है सो उचित ही है। मोक्ष सम्यग्ज्ञान और समम्यक् चारित्र से होता है, उसका निषेध उक्तवाक्य में नहीं है। मैं ही ऐसा कहता हूँ, सो नहीं; तुम्हारे शास्त्र में भी कहा है-ब्रह्म के दो भेद हैं-पर और अपर । और इन दोनों में से जो पर ब्रह्म है. वह सत्य, ज्ञान एवं अनन्त स्वरूप है। वेद में भी कहा है-'सत्यं ज्ञान मनन्तं ब्रह्म ।' अगर जीव को मोक्ष न होता तो उसे सत्य, ज्ञान एवं अनन्त स्वरूप की प्राप्ति कैसे होती? ऐसी स्थिति में प्रमाण माने हुए तुम्हारे वेदों का कथन किस प्रकार संगत होगा? वेद के इस वाक्स से तो मोक्ष की सत्ता ही होती है। अतः मोक्ष है, यह निस्सन्देह सिद्ध है। प्रभु के इस प्रकार के वचन सुनकर પાદન કરાયેલ છે કે અગ્નિહોત્ર કરા-મરણના અંતનું કારણ નથી, પ્રત્યુત જરા-મ૨ણુનું કારણ છે. એમાં ધ્યાન, અધ્યયન, તપશ્ચરણ આદિ કારણોથી થનાર જરા-મરણના અભાવે રૂપ મોક્ષને નિષેધ કરાયો નથી. અગ્નિહોત્ર આરંભસમારંભ અને હિંસ જનિત તથા સ્વર્ગ અને વૈભવ આદિની કામના વડે પ્રેરિત અનુષ્ઠાન છે તેથી તેને જરા-મરણનું જે કારણ કહેલ છે તે યોગ્ય જ છે. મેલ સમ્યગ જ્ઞાન અને સમ્યફ ચારિત્રથી મળે છે, તેને નિષેધ ઉપર્યુક્ત વાકયમાં નથી. હું જ એમ કહું છું એટલું જ નહીં. પણ તમ ર શાસ્ત્રમાં પણ કહ્યું છે-બ્રહ્મના બે ભેદ છે–પર भने ४५२-२मा माथी २ ५२ब्रह्म छ ते सत्य, ज्ञान भने सनत २१३५ छ. भा पर घुछ-"सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म" ने मोक्ष नडात तो तेने सत्य, ज्ञान भने सनत स्१३पनी प्रासि वी शत थात? એવી સ્થિતિમાં પ્રમાણુરૂપ માનેલ તમા વેદનું કથન કઈ રીતે સંગત થશે? વેદના આ વાક્યથી તે મોક્ષની તો સત્તા જ સિદ્ધ થાય છે તેથી મિક્ષ છે તે નિઃસંદેહ સિદ્ધ થાય છે. પ્રભુને આ પ્રકારનાં વચને સાંભળીને પ્રભાસે संशय निवारणम् दीक्षाग्रहणं ॥४३४॥ Ian Eલા For Private Personal Use On REEO Maw.jainelibrary.org

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