Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
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श्रीकल्स
कल्प. मञ्जरी टीका
११३७॥
बालं अग्गेगाउं अन्नाओ बहो उग्गभोगरायण्यामच्चप्पभिईणं कन्नाओ पव्यावेइ पुणो य बहवे उग्गभोगाइकुलप्पभूरा नरा नारीमो य पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्वावइयं एवं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिय समणोवासया जाया।
तगणं से समणे भगवं महानी रे तित्थयर नामगोय कम्मक्खवणई समणसमगीसावयसापियारूपं चउविहं संघ ठाविय इंदभूइपभिईणं गणहराणं-'उप्पन्ने वा विगमे वा धुवे वा' इव तिवई दलइ । एयाए तिवईए गणहरा दुवालसंगं गणिपिडगं विरयंति । एवं एगारसण्डं गगहराणं नव गणा जाया तं जहा-सत्तण्हं गणहराणं परोप्परभिन्न वायणाए सत्तगणा जाया। अकंपियायलभायाणं दुण्डंपि परोप्परं समाणवायणयाए एगो गणो जाओ। एवं मेयजपभासाणं दुण्डंपि एगवायणयाए एगो गणो जाओ। एवं नव गणा संभूया।
तएणं से समणे भगवं महावीरे मज्झिम पावापुरीओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमिसा अणेगे भविए पडिबोहमाणे जणवयविहारं विहरइ । एवं अणेमेसु देसेसु विहरमाणे भगवं जणाणं अण्णाणदेण्णमवणीय ते जाणाइसंपत्तिजुए करी। जहा अंवरम्मिपगासमाणो भाण अंधयारमवणीय जगं हरिसेइ तहा जगभाशु भगवं मिच्छत्तांधयारमवणीय णाणप्पगासेण जगं हरिसी। भवकूबपडिए भविए जाणरजुणा बाहिं उद्धरीभ । भगवं जले धरो व अमोहधम्मदेसणामियधाराए पुर्वि सिंघीय।
एवं विहारं विहरमाणस्स भगवनो एगचत्तालीसं चाउम्मासा पडिपुष्णा, तं जहा-एगो पढमो चाउम्मासो अस्थियगामे १। एगो चंपा गयरीए २, दुवे पिट्टचंपाणयरीए ४। बारस वेसाली णयरी वाणियग्गामनिस्साए १६। चउस रायगिह णगर नालंदाणाम य पुरसाहानिस्साए ३०। छ मिहिलाए ३६। दुवे भदिलपुरे ३८। एगो आलंभियाए णयरीए ३९, एगो सावत्थीए णयरीए ४०। एगो बजभूमि नामगे अणारिय देसे जाओ ४१ । एवं एगचत्तालीसा चाउम्मासा भगवओ पडिपुण्णा ४१। तएणं जणवयविहारं विहरमाणे भगवं अपच्छिम बायालीसइमं चाउम्मासं पावापुरीए हत्थिपालरणो रजुगसालाए जुष्णाए ठिए ॥सू०११४॥
छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये चन्दनवाला भगवतः केवलोत्पत्ति विज्ञाय प्रव्रज्या ग्रहीतमुत्कण्ठिता सती प्रभु समीपे संप्राप्ता। सा च प्रभुमादक्षिणप्रदक्षिणं करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा
मूल का अर्थ-'तेणं कालेणं' इत्यादि । उस काल और उस समय में चन्दनबाला भगवान महावीरप्रभु को केवली हुए जानकर दीक्षा ग्रहण करने के लिये उत्कंठित हुई प्रभु के समीप पहुँची। उसने प्रभु को आदक्षिण
भूजन - तेणं कालेणं' त्यात आणे भने त समये यनमा सवानने ज्ञाननी पति થઈ એમ જાણી દીક્ષા ગ્રહણ કરવા ઉદ્યત બની, અને પ્રભુની પાસે આવી પહોંચી. તેણીએ પ્રભુને આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણ
संघस्थापना चतुर्माससंख्या च। ।मु०११४॥
न
॥४३७)
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