Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot

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Page 436
________________ YBOX श्रीकल्प सूत्रे ॥४२५॥ कल्प मञ्जरी टीका तं तमेवैति कौन्तेय ! सदा तद्भावभावितः" इच्चाइ। अओ सिद्धं परलोगो अस्थित्ति । एवं सोचा निसम्म छिन्नसंसओ मेयजोवि तिसयसीसेहिं पचरओ ॥१०॥ तं पवइयं सोचा एगारसमो पंडिओ पभासामिहोवि तिसयसीससहिओ नियसंसयावणयणत्थं पहसमीवे समणुपत्तो। पहुणा य सो आभट्ठो-भो पभासा! तव मणंसि इमो संसओ वट्टइ-जं निव्वाणं अत्थि नत्थि वा? जइ अस्थि किं संसाराभावो चेव निव्वाणं! अह वा दीव सिहाए विव जीवस्स नासो निव्वाणं ? जइ संसाराभावो निवाणं मन्निज्जइ, ताहे तं वेयविरुद्धं भवइ, वेएम कहियं-"जरामये वै तत्सर्व यदग्निहोत्रम्" इति। अणेण जीवस्स संसाराभावो न भवइत्ति । जइ दीव सिहाए विव जीवस्स नासो निव्वाणं मन्निज्जइ, ताहे जीवाभावो पसज्जइति । तं मिच्छा। निब्याणं ति मोक्खो ति वा एगहा! मोक्खो उवद्धस्सेव हवइ । जीवो हि कम्मेहिं बद्धो अओ तस्स पययणविसेसाओ मोक्खो भवइ चेव । अस्स विसए मंडिय पण्हे सव्वं कहियं, तं धारेयव्वं तवसत्थे पि वुत्तं-"द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये परमपरं च। तत्र परं "सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मेति। अणेण मोक्खस्स सत्ता सिज्झइ। अओ सिद्ध मोक्खो अत्थि ति। एवं सोचा छिन्नसंसओ पभासोवि तिसयसीसेहि पवइओ ॥११॥ एत्थ संगहणीगाहादगं- .. जीवेय कम्मविसए, तज्जीवय तच्छरीरै भूएं य। तारिसय जम्मजोणी परे भवे, बंधमुक्खे य ॥१॥ देव नेरइये पुण्णे, परलोए तह य होइ निवाणे। एगारसाबि संशयच्छेए पत्ता गणहरतं ॥ २॥।॥ को गणहरो कइसंखेहिं सीसेहिं पव्वइओत्ति-पडिवाइया संगहणी गाहा पंचसयो पंचण्डं, दोण्हं चिय होइ सद्धतिसयो य । सेसाणं च चउण्हं, निसओ तिसओ इबइ गच्छो ॥१॥ एवं पहुसमीवे सव्वे चोयालसया दिया पव्वइया ।मु०११३॥ ॥ इय गणहरवाओ। छाया-मेतार्योऽपि निज संशयच्छेदनार्थ त्रिशतशिष्यैः परिवृतः प्रभुसमीपे समागतः। भगवान् तं वदतिभो मेतार्य । तर मनसि अयं संशयो वर्तते, परलोको नास्ति । यतो वेदेषु कथितम्-"विज्ञानपनएघेतेभ्यो प्रभासस्य निर्वाण विषय संशयनिवारणम् दीक्षाग्रहणं च। ॥सू०११३॥ ॥४२५॥ Jain Education in donal For Private & Personal Use Only

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