Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot

View full book text
Previous | Next

Page 439
________________ श्रीकल्प मञ्जरी ॥४२८॥ टीका जीवो हि कर्मभिर्बदः, अतस्तस्य प्रयत्नविशेषान्मोक्षो भवत्येव । अस्य विषये मण्डिकाने सर्व कथितं तद धारयितव्यम् । तव शास्त्रेऽप्युक्तम्-'द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये परमपरं च। तत्र परं-'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' इति। अनेन मोक्षस्य सत्ता सिध्यति । अतः सिद्ध मोक्षोऽस्तीति । एवं श्रुत्वा छिन्नसंशयः प्रभासोऽपि त्रिशतशिष्यैः प्रवजितः॥११॥ ___ अत्र संग्रहणी गाथा द्वयम् . जीवे च कर्मविषये, तज्जीवक तच्छरीरे-भूते च । तादृशक जन्मयोनौ परे भेवे, बन्धमोक्षो च ॥१॥ तुम्हारा यह सन्देह निराधार है। निर्वाण और मोक्ष दोनों एक ही अर्थ को बतलाने वाले शब्द हैं। बद्ध जोव का ही मोक्ष होता है। जीव कर्मों से बद्ध है, अतः प्रयत्न-विशेष से उसका मोक्ष होता ही है। मोक्ष के विषय में मण्डिक के प्रश्न में कहा है, वह सब समझ लेना चाहिए। तुम्हारे शास्त्र में भी कहा है'द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये परमपरं च । तत्र परं सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' इति । अर्थात्-दो प्रकार के ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनन्त स्वरूप हैं। इस से मोक्ष की सत्ता सिद्ध होती है। अतः मोक्ष का सदभाव सिद्ध हुआ। इस प्रकार सुनकर प्रभास भी संशय-निवृत्त होकर तीनसौ शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये। किस गणधर का कौन संशय था ? इस विषय में यहाँ दो संग्रहिणी गाथाएँ हैं "जीवे य कम्मविसये, तज्जीव य तच्छरीर भूए य । तारिसय जम्मजोणी परे भवे बंधमुक्खे य ॥१॥ વને પ્રસંગે ઉપસ્થિત થાય છે. માટે તારે આ સંદેહ પાયા વગરનો છે. નિર્વાણ અને મોક્ષ’ બને એકજ અર્થબતાવવાવાળા પર્યાયવાચક શબ્દો છે. જે જીવ બંધાએલ છે, તેને જ મોક્ષ હોય! જીવ કર્મોવડે બંધાયેલ હોય તેનેજ વિશેષ પ્રયત્નો વડે મોક્ષ થઈ શકે માક્ષની બાબતમાં છઠ્ઠા ગધર મંડિકને જે દલીલે વડે સમજાવવામાં माया, a talat १ सभ देवी. तभा थालमा ५५ ४ ३, 'द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये परमपरं च तत्र परं सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मति अर्थात्-मे २॥ अझ onा नये 8 'प२७ भने भी अपरा ' આ બંનેમાં પરબ્રહ્મ, સત્ય, જ્ઞાન અને અનંત રવરૂપી છે. આથી “માક્ષને સદૂભાવ સિદ્ધ થાય છે. આવા અદ્વિતીય પ્રવચન દ્વારા, પ્રભાસને સંશય ટળી ગયો, અને ત્રણ શિષ્યો સાથે તે દિક્ષીત થયા. કયા ગણધરને કયે સંશય હતે ? આ વિષયમાં અહીં બે સંગ્રહિણી ગાથાઓ આપવામાં આવે છે जीवे य कम्मविसये तज्जीव य तच्छरीर भूए य । तारिसयजम्मजोणी परेभवे बंध मुक्खे य (१) ॥ प्रभासस्य दीक्षाग्रहणम्। मू०११३॥ की ॥४२८॥ Jain Education inthiasinal För Private & Personal only SUAGjainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504