Book Title: Kalpasutram Part_2
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot

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Page 429
________________ श्रीकल्प कल्प मञ्जरी ॥४१८॥ टीका म सन्ति "न हवै प्रेत्य नरके नारकाः सन्ति" इत्यादि वचनादिति, तन्मिथ्या, नारकाः सन्त्येव न पुनस्ते ऽत्राऽऽगच्छन्ति, नो खलु मनुष्यास्तत्रगन्तुं शक्नुवन्ति । अतिशयज्ञानिनस्तान् प्रत्यक्षत्वेन पश्यन्ति । तव शास्त्रेऽपि-"नारको वै एष जायते यः शूद्रान्नमश्नाति" एतादृग् वाक्यं लभ्यते। यदि नारका न भवेयुस्तदा 'शूद्रान्नभक्षको नारको भवति' इति वाक्यं कथं संगच्छेत ? । अनेन सिद्ध 'नारकाः सन्ती' ति । एवं श्रुत्वा अकम्पितोऽपि त्रिशतशिष्यः प्रबजितः। 'अकम्पितोऽपि प्रत्रजितः' इति ज्ञात्वा पुण्यपापसन्देहयुतोऽचलभ्रातेति नामकः पण्डितोऽपि त्रिशतशिष्यः परिवृतः प्रभुसमीपे समागतः। तं दृष्ट्वा भगवानेवमवादित्-भो अचलभ्रातः तव हृदयेऽयं संशयो वर्तते यत्सन्देह है कि नारक जीव नहीं है, क्यों कि शास्त्र में कहा है-'न ह वै पेत्य नरके नारकाःसन्ति' इति । अर्थात-'परभव में, नरक में नारक नहीं हैं। तुम्हारा यह मत मिथ्या हैं। नारक तो हैं ही, किन्तु वे यहाँ आते नहीं हैं और न मनुष्य ही वहीं जा सकते हैं। फिर भी लोकोसरज्ञानी उन्हें प्रत्यक्ष रूपसे देखते हैं। तुम्हारे शास्त्र में भी ऐसा वाक्य देखा है कि नारको वै एष जायते यः शूद्रान्नमश्नाति' इति अर्थात्जो शूद्र का अन्न खाता है, वह नारकरूप मे उत्पन्न होता है। अगर नारक न होते तो 'शूद्र का अन्न खाने वाला नारक होता है, यह कैसे संगत होता? इससे नारकों का अस्तित्व सिद्ध होता है। इस प्रकार सुमकर अकम्पित भी तीनसौ शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये। 'अकम्पित भी दीक्षीत हो गये' यह जान कर पुण्य-पाप के विषय मे सन्देह रखनेवाले अचलभ्राता नामक पण्डित भी तीनसौ शिष्यों के साथ प्रभु के पास गये। उन्हें देखकर भगवान् ने ऐसा कहा हे री , भ? ४१२९५ ता॥ शास्त्रमा ४५ छे 3-"न ह वै प्रेत्य नरके नारकाः सन्ति" પરભવમાં નરકમાં નારક નથી.” આ તારું મંતવ્ય મિથ્યા છે. નારકી છે! પણ તેઓ અહીં આવતા નથી, તેમજ મનુષ્ય પણ ત્યાં જઈ શકતા નથી. તે પણ લકત્તર પુરુષે તેમને પ્રત્યક્ષપણે જોઈ રહ્યા છે. તમારા શાસ્ત્રમાં એવું वाध्य नेपामा माछ, "नारको वे एप जावते यः शूद्रान्नमश्नाति" ति, अर्थात- शूद्रनु मन भाय છે, તે નારકપણે ઉત્પન્ન થાય છે” જે નારકીના છ ન હોય, તો આ વાકયની સંગતતા કેવી રીતે થઈ શકે? માટે સિદ્ધ થાય છે કે, નારકીના જીનું અસ્તિત્વ છે. આવું સાંભળી, અકંપિત પણ પિતાના ત્રણ શિષ્યો સાથે અણગાર થયો. અકંપિતની દીક્ષા સંભળા, પુણ્ય-પાપમાં સંદેહ રાખવાવાળો અચળબ્રાતા નામને પંડિત પણ ત્રણ શિષ્ય on સાથે પ્રભુની પાસે ગયો તેને જોઈ ભગવાને પ્રશ્ન કર્યો કે હું અળખાતા ! તારા મનમાં એવી માન્યતા થઈ ગઈ अकम्पितस्य दीक्षाग्रहणम् में अपलभ्रात्रोः पुण्यपापविषय संशय 0 निवारणं च। सू०११२॥ ॥४१८॥ Jain Education www.jainelibrary.org

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