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ज्यों था त्यों ठहराया
बच्चा अपनी मुसीबतें जानता है तुम जरा फिर से सोचो बचपन को पुनरुज्जीवित कर के सोचो, तब तुम्हें पता चलेगा -- कितनी मुसीबतें थीं। रोज-रोज स्कूल जाना। रोज-रोज स्कूल में पिटाई- कुटाई। कान पकड़-पकड़ कर उठाया जाना। घुटने टिकवाना सजाएं -दंड-बैठक लगवाना! कौन जाना चाहता है। सुबह-सुबह सर्द दिन, और शनिवार आ जाए--कौन उठा चाहता है सुबह - सुबह ? एक करवट और ले कर आदमी कंबल ओढ़ कर सो जाना चाहता है। जरा याद करो, पुनरुज्जीवित करो, फिर से जीओ, तो तुम इतना सुखी नहीं पाओगे, जितना तुम अभी पा रहे हो लेकिन अगर तुम यूं देखोगे खड़े दूर हो कर तो जवानी में लगेगा: बचपन बड़ा अदभुत था । सुख ही सुख था । न कोई चिंता । मगर यह अब तुम कह रहे हो तब बहुत चिंता थी कि परीक्षा में पास होंगे कि नहीं होंगे माना कि नौकरी की चिंता नहीं थी। दूसरी चिंताएं थीं। स्कूल में शैतान बच्चे थे, वे सताते।
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मेरे स्कूल में एक लड़का था, उसकी चांद पिलपिली थी। वह भी मुझे जब बाद में मिला, तो कहने लगा, अहा, कैसे अच्छे दिन थे! मैंने कहा, तू तो मत कह! उसने कहा, क्यों? मैंने कहा, मुझे भली-भांति तेरी जिंदगी याद है।
जो भी उससे जरा मजबूत था, वही उसकी चांद पिलपिलाता था! जो भी मिल जाए; वह टोपी उतार कर पहले उसकी चांद दबाए। और मैंने उसकी चांद इतनी दबाई कि मुझे एक दफा हेडमास्टर के पास भेजा गया कि तुम क्यों इस लड़के को सताते हो तुम क्यों इसकी टोपी उतार इसकी चांद... 3
तो मैंने हेडमास्टर से कहा कि आप इसके पहले कि मुझे कुछ कहें, मैं इसकी टोपी उतारता
आप इसकी चांद पिलपिला कर देखें! उन्होंने कहा, इसमें क्या है! इसकी चांद में क्या है? वे भी उत्सुक हुए। मैंने कहा, आप देखें तो। जब उन्होंने उसकी चांद पिलपिलायी, तो वे भी हंसने लगे। उन्होंने कहा कि बात तो ठीक है। चांद इसकी अदभुत है ! उसकी बड़ी पिलपिली चांद थी मैंने कहा, अब आप ही कहो, ऐसी चांद हो, तो कसूर किसका? ऐसे देना हो सजा, आप मुझे दे सकते हो। मगर इसकी चांद इतनी अदभुत है कि किसका जी इसकी चांद दबाने का न होगा।
उस लड़के की जान मुसीबत में थी। चांद दबाते ! उसका कान नहीं पकड़ते हो सकता था।
शिक्षक भी उसको सजा देते, तो टोपी निकाल उसकी उसकी चांद दबाते क्योंकि वही उसका सबसे बड़ा दंड
उसकी हालत मैं जानता था कि वह छिपा - छिपा स्कूल आता; गली-कूचों में से आता--क कहीं सीधी सड़क से गया, तो मिलने वाले हैं दुष्ट--और वे सताएंगे। तो हमेशा स्कूल देर से आता। और जल्दी छुट्टी मांगता कि जब स्कूल की छुट्टी होती, तो एक हजार लड़के! एक साथ छूटना ! उसकी मुसीबत हो जाती। घर जाते-जाते उसकी चांद इतनी दबाई जाती कि उसकी जान मुसीबत में थी।
वही मुझे बाद में जब मिला, तो मैंने कहा, चंदूलाल ! तू तो मत कह!
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