Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ पञ्चम तीर्थङ्कर सुमतिनाथ और उनकी पञ्च-कल्याणक तीर्थ- भूमियाँ -श्रीमती डॉ. राका जैन, लखनऊ भगवान् सुमतिनाथ या सुमति जिनेन्द्र अवसर्पिणी काल के भरत क्षेत्र स्थित उत्तराखण्ड में कर्मभूमि के प्रारम्भ में अर्थात् चतुर्थ काल के पञ्चम तीर्थङ्कर हैं - 'तीर्थं करोतीति तीर्थंकरः अपि च, तरति संसारमहार्णव येन निमित्तेन तत्तीर्थम्।' तीर्थङ्कर अपनी दिव्य-देशना द्वारा असंख्य जनसमूह को कल्याण के प्रशस्त मार्ग पर लगाते हैं। भगवान् सुमतिनाथ के पूर्व भव का नाम महापुराण के अनुसार रतिषेण, पद्मपुराण के अनुसार महाबल, हरिवंशपुराण के अनुसार अतिबल चक्रवर्ती मण्डलेश्वर थे और पद्मपुराण के अनुसार पिता का नाम विमलवाहन और हरिवंशपुराण के अनुसार सीमन्धर था। चतुर्थ तीर्थङ्कर भ. अभिनन्दन स्वामी की मुक्ति होने के बाद एक लाख करोड़ वर्ष बीतने पर 5 वें जिनेन्द्र भ. सुमतिनाथ का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था। पिता मेघरथ और मंगलदेवी माता थी। राजा मेघरथ अयोध्या के शासक थे। भ. सुमति जिनेन्द्र जन्मतः ही 10 अतिशयों के एवं अवधिज्ञान के धारक थे। जिस तरह देवतागण स्वर्गों में सुख-शान्तिपूर्वक रहते हैं, उसी तरह भ. सुमति जिनेन्द्र के शासन में जनता रहती थी। उस समय की जनता यह नहीं जानती थी कि पाप क्या चीज है? दसरों को सताना या कष्ट पहँचाना किसे कहते हैं? चारों ओर से हर्ष और आनन्द का वातावरण ही था। व्यक्ति अपने में पूर्ण एवं सन्तोषी था। भ. सुमति जिनेन्द्र के शासनकाल में व्यक्ति में सुमति (सबुद्धि, सुन्दरबुद्धि) विद्यमान थी। तीर्थङ्कर के समय नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र, कामदेव आदि हुए। सुमतिनाथ के समय प्रसेनचन्द्र कामदेव प्रसिद्ध हैं जो 24 कामदेवों में से एक हैं। इस आलेख को तीन भागों में विभक्त किया हैक- जैन-साहित्य के परिप्रेक्ष्य में भगवान् सुमतिनाथ __तीर्थङ्करों के पावन जीवन पर भारत की सभी भाषाओं मेंसमृद्ध साहित्य है। हजारों वर्षों से अनेकों भाषाओं के कवियों एवं विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, तमिल, कन्नड़ आदि विभिन्न भाषाओं में अपार साहित्य का निर्माण करके उनके प्रति अपनी श्रद्धा एवं भक्ति प्रदर्शित की है। काव्य के विभिन्न रूपों में उन्होंने अपनी लेखनी चलायी और देश के समक्ष एक साहित्य सेवा का ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत किया। यद्यपि जैन-साहित्य में चौबीस तीर्थङ्करों का पर्याप्त वर्णन मिलता है तथापि ऋषभनाथ, चन्द्रप्रभु, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर भगवान् पर विपुल साहित्य मिलता है। अन्य तीर्थङ्करों के जीवन चरित्र पर यत्र-तत्र वर्णन प्राप्त होता है। स्वामी समन्तभद्राचार्य ने स्वयम्भू स्तोत्र में भगवान् सुमतिनाथ की स्तुतिपरक श्लोक प्रस्तुत किये। - 30.