Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ फिर भी मैं अभी भी अपने को इस लिपि की छात्रा ही मानती हूँ। वस्तुतः हमारा जो भी गौरवपूर्ण इतिहास अभिलेखों एवं शिलालेखों के माध्यम से अब तक सुरक्षित रह पाया है, वह अधिकांश इसी ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। सम्राट अशोक के शताधिक शिलालेख एवं जैन सम्राट् खारवेल का हाथीगुम्फा (उदयगिरि- खण्डगिरि) शिलालेख इस ब्राह्मी लिपि के प्राचीन प्रमुख उदाहरण हैं। यह पहले ही कहा गया है कि प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव ने अपनी दो पुत्रियों में से प्रथम ब्राह्मी नामक पुत्री को अपने दायीं ओर बैठाकर लिपिविद्या और सुन्दरी नामक पुत्री को बायीं ओर बैठाकर अंक विद्याएं सिखायी थीं। इस तरह लिपि विद्या की प्रथम छात्रा के रूप में भगवान् ऋषभदेव ने सर्वप्रथम जिसे लिपि लिखना-पढ़ना सिखाया था. उस ब्राह्मी कन्या के नाम पर ही इस लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि प्रचलित हआ। आदिनाथचरित (3/14) में लिखा है अक्षराणि विभु ब्राह्मया अकारादीन्यवोचत्। वामहस्तेन सुन्दा गणितं चाप्यदर्शयेत्।। इस लिपि का ज्ञान भगवान् ऋषभदेव जब एक प्रथम राजा के रूप में राजशासन का सञ्चालन कर रहे थे तब उन्होंने पूर्वोक्त षट्कर्मों का सर्वप्रथम प्रवर्तन करते हुए संसार में अज्ञान को दूर करने वाली और जगत का कल्याण करने वाली ज्योति के रूप में इस ब्राह्मी लिपि का परिज्ञान करवाया। उनके द्वारा करवाये गये ज्ञान से कि उस लिपि का नाम ही ब्राह्मी लिपि प्रसिद्ध हो गया। अभिधान राजेन्द्र कोष में लिखा है कि लेखो लिपिविधान तहक्षिणहस्तेन जिनेन ब्राह्मया दर्शितम् इति। तस्माद ब्राह्मी नाम्नी सा लिपि। 'पण्णवणासुत्त' (प्रज्ञापनासूत्र) नामक प्राकृत आगम ग्रन्थ में उल्लिखित अट्ठारह प्रकार की लिपियों में सर्वप्रथम 'बंभी' लिपि का नाम है। बौद्ध-ग्रन्थ 'ललितविस्तर' में भी 64 प्रकार की लिपियों के नाम दिये गये हैं जिनमें प्रथम नाम ब्राह्मी का ही है। इतना ही नहीं जैन आगम भगवतीसूत्र में 'नमो बंभीए लिविए' कहकर ब्राह्मी लिपि को नमस्कार करके उसके प्रति पूर्ण श्रद्धा व्यक्त की गयी है। इस तरह आधुनिक देवनागरी लिपि का मूलस्रोत प्राचीन राष्ट्रीय लिपि ब्राह्मी से सम्बद्ध है और उसके विकास, स्वरूप की एक सुनिश्चित परम्परा है। प्राप्त साक्ष्यों, ग्रन्थों, लेखों, शिलालेखों आदि के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत की प्राय: समस्त प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक लिपियों का उद्गम 'ब्राह्मी' ही है। उत्तरी शैली और दक्षिणी शैली के अनुसार ब्राह्मी लिपि से ही अन्यान्य लिपियों का विकास हुआ। ब्राह्मी लिपि के अक्षरों का विकास होते-होते आज की देवनागरी, गुजराती, बंगला, आसामी, उड़िया, मैथिली, तेलगु, तमिल, मलयालय आदि लिपियों की उत्पत्ति हुई। यही नहीं तिब्बती, नेवारी, सिंहली, बर्मी तथा दक्षिण-पूर्व एशिया की सभी लिपियां इसी से निकली हैं। 350 ई. के बाद से इसकी उत्तरी और दक्षिणी दो शैलियाँ हो गयी जिससे दोनों की विभिन्न शाखाओं से उत्तरी और दक्षिण भारत की लिपियों का विकास हुआ। ब्राह्मी से निकली लिपियों के विकास की एक सुनिश्चित परम्परा रही है। ब्राह्मी लिपि सहज और सरल लिपि है। इसे दूसरी लिपियों की अपेक्षा कम समय में सीखा जा सकता -77