Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ सल्लेखना आदि का उल्लेख हैं। अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के द्वारा इस कलवप्पु चिक्कबेट्ट-चन्द्रगिरि पर्वत पर सल्लेखनापूर्वक समाधि-मरण करने से यह स्थान प्राय: साधुओं के लिए समाधिस्थल बन गया था। सम्राट मौर्य चन्द्रगुप्त ने भी दिगम्बर दीक्षा धारण कर यहीं समाधि-मरण किया था। इस प्रकार का शिलालेख भी यहाँ है। श्रवणबेलगोला के शिलालेख जैन-संस्कृति एवं तत्सम्बन्धी मूल्यवान् साहित्य व प्रसिद्ध जैनाचार्यों के सम्बन्ध में विस्तार से प्रकाश डालते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, उमास्वामी, मल्लिसेन, अरिष्टनेमि, देव जिनसेनाचार्य, पूज्यपाद, अजितसेन, नेमिचन्द्राचार्य, मलधारीदेव, वादिराज, शान्तिसेन आदि आचार्यों से सम्बन्धित यहाँ अनेकों शिलालेख उत्कीर्ण हैं। साथ ही अनेकों राजाओं, राजवंश आदि जिनका संरक्षण जैनधर्म व जैनाचार्यों को रहा है, से सम्बन्धित शिलालेख है। जैसे- गंगवंश, राष्ट्रकूट, होयसल, चाणुक्य वंश, कदम्ब वंश आदि के इतिहास की जानकारी मिलती है। सेनापति चामुण्डराय-गोम्मटेश बाहुबली के निर्माणकर्ता के सम्बन्ध में शिलालेख है। ये सभी शिलालेख तत्समय की परिस्थितियों पर प्रामाणिक प्रकाश डालते हैं। अनेकों शिलालेखों में उत्तर-दक्षिण से यात्रा हेतु आये हुए संघों व यात्रियों का वर्णन है। जैन धार्मिक क्रियाओं के उल्लेख करने वाले शिलालेख भी हैं। कई लेखों में दानों की चर्चा है। कई शिलालेख महिलाओं के विशेष योगदान की चर्चा करते है। शान्तलादेवी के गुणगान से सम्बन्धित लेख भी यहाँ है। अत्तिमब्बे, लाकाम्बिका, आचल आदि देवियों से सम्बन्धित लेख हैं। शास्त्रार्थ कर अन्य मतावलम्बियों पर विजय पाने के लेख भी यहाँ हैं। प्रसिद्ध कवि रन्न, मल्लिनाथ, चावराज, बोप्पन्न पण्डित, अर्हद्दास आदि के शिलालेख भी यहाँ है। यक्षिणी देवों की प्रतिमाएं स्थापित किये जाने के लेख भी उपलब्ध हैं। प्राचीन वास्तु प्रतिमा-विज्ञान तथा मूर्तिकला के सम्बन्ध में भी जानकारीयुक्त शिलालेख क्षेत्र पर हैं। भाषा और साहित्य के सम्बन्ध में भी शिलालेख हैं। ऐसे सभी आयामों से सम्बन्धित सभी सामग्री का परिचय यहाँ शिलालेखों से प्राप्त है। श्रवणबेलगोला के शिलालेखों से दिगम्बर जैन-संस्कृति की प्राचीनता का बोध मिलता है। ये शिलालेख दिगम्बर जैन-संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। समय की थपेड़ों में शिलालेख जीर्ण-शीर्ण हो रहे है। इन सभी शिलालेखों का श्री बी.एल. राइस, श्री आर. नरसिंहाचार्य, श्री शेट्टर जैसे मनीषियों ने पुस्तक के रूप में संगृहीत कर महान् कार्य किया है। मैसूर विश्वविद्यालय ने इस कार्य को प्रमुखता से सम्पन्न किया है एवं सुरक्षित किया है इसलिए वे आभार के पात्र है। 12 -