Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti

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Page 193
________________ शनि - 35 सूर्य दर्शन मोहनीय काला नीलमणि चारित्र मोहनीय पीला एवं लाल मिश्र गोमेद अन्तराय मंगल लाल मूंगा वेदनीय शुक्र चमकता सफेद हीरा 7. आयुकर्म चन्द्रमा सफेद मोती 8. नामकर्म अरुणिम लाल माणक 9. गोत्रकर्म केतु काला लहसुनिया मनुष्य के विकास में सहायक इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति इन तीनों की सूचना विभिन्न किरणों द्वारा प्राप्त होती है। इस प्रकार जैन चिन्तकों ने ग्रहों के फलसूचक व्यवस्था को निमित्त के रूप में उपस्थित किया है। व्यक्ति अपने यत्नाचार एवं प्रबल पुरुषार्थ के द्वारा ग्रहों के शुभाशुभ सूचक निमित्त से प्राप्त फलित को उत्कर्ष, अपकर्ष और संक्रमण आदि के द्वारा संभल सकता है। जैन-परम्परा के अनुसार प्रथम कुलकर प्रतिश्रुति के समय में जब मनुष्य को सूर्य और चन्द्रमा दिखलायी दिये, तो वे इनसे सशंकित हुए और अपनी शंका दूर करने के लिए उनके पास चले गये। उन्होंने सूर्य, चन्द्रमा-सम्बन्धी ज्योतिष विषयक ज्ञान की शिक्षा दी। द्वितीय कुलकर ने नक्षत्र विषयक शंकाओं का निवारण कर अपने युग के व्यक्तियों को आकाश मण्डल की समस्त जानकारियाँ बतलायी। जैन ज्योतिष में पञ्चवर्षात्मक युग एवं युगानुसार ग्रह नक्षत्र आदि की आनयनविधि प्रतिपादित है। इस प्रसंग का व्यापक और मौलिक विवेचन धवला ग्रन्थ, ठाणाङ्गसूत्र एवं प्रश्नव्याकरण अंग-आगम में ग्रह नक्षत्र आदि की आनयन विधि प्रतिपादित है। इसप्रकार जैन चिन्तकों ने नक्षत्रों का कुल, उपकुल और कुलोपकुल में विभाजन कर वर्णन किया है। चन्द्रमा के साथ स्पर्श करने वाले एवं उसका वेध करने वाले नक्षत्रों का भी कथन प्राप्त होता है। अतएव इस आलोक में यह कहा जा सकता है कि ग्रहगणित-सम्बन्धी अनेक विशेषतायें जैन ज्योतिष में समाहित है। ___ भारतीय विज्ञान की प्रत्येक शाखा की उन्नति में इतर धर्मावलम्बियों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने वालों में जैनाचार्यों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनेक लोकोपयोगी विषयों के निर्माण और अनुसन्धान द्वारा भारतीय विज्ञान के विकास में जैनाचार्यों ने अपने लेखनी का कौशल दिखलाया है। उनकी अमर लेखनी से प्रसूत दिव्य रचनाएं अद्यतन जैनविज्ञान की यश:पताका को फहरा रही हैं। ज्योतिषशास्त्र का आलोडन करने पर ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों द्वारा निर्मित ज्योतिष-ग्रन्थों से भारतीय ज्योतिष में अनेक नवीन तथ्यों का समावेश हुआ है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों में एतद् विषयक सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। जैनाचार्यों द्वारा निर्मित ज्योतिष-ग्रन्थों से भारतीय ज्योतिष में अनेक नवीन तथ्यों का समावेश तथा प्राचीन सिद्धान्तों में परिमार्जन हुआ है। सम्भवत: जैन ज्योतिष ग्रन्थों के सहायता के बिना भारतीय ज्योतिष के विकासक्रम को कठिन ही नहीं असम्भव प्रतीत होता है। अद्यतन भारतीय ज्योतिष की विवादास्पद अनेक समस्याएं जैन-ज्योतिष के सहयोग से सुलझायी जा सकती है। .- 13

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