Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ युग के ख्यातिनाम पत्रों में 'जैन हितैषी' का नाम भी उल्लेखनीय है जिसके संस्थापक व सम्पादक पं. पन्नालालजी बाकलीवाल थे। बुलन्दशहर से ब्र. शीतलप्रसादजी द्वारा सम्पादित 'सनातन जैन' तथा बम्बई से प्रकाशित साप्ताहिक 'जैन प्रकाश' की भी अपनी विशिष्ट भूमिका थी। स्वतन्त्रता पूर्व के ख्यातिनाम पत्रकारों में पं. पन्नालालजी बाकलीवाल, पं. नाथूरामजी प्रेमी, पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार, बाबू कामताप्रसाद जैन, पं. दरबारीलाल जी सत्यभक्त, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, पं. कैलाशचन्दजी शास्त्री, ब्र. शीतलप्रसाद, डॉ. हीरालाल, डॉ. ए.एन. उपाध्ये, पं. के. भुजबलि शास्त्री, पं. चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ तथा पं. परमेष्ठीदासजी आदि प्रमुख थे। इतिहासविद् डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन अपने लेख 'मेरी पत्रकारिता के पचास वर्ष' में पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार की प्रशंसा निम्न शब्दों में करते हैं -- ‘पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तार मेरी दृष्टि में अपने युग के और अपने ढंग के अद्वितीय एकनिष्ठ खोजी शोधी साहित्यान्वेषक समालोचक थे। उन जैसा प्रखर सम्पादकाचार्य जैन समाज में शायद अब तक अन्य नहीं हुआ। आज जनसंचार माध्यमों के कारण पत्रकारिता का क्षेत्र लोकप्रियता के प्रथम पायदान पर प्रतिष्ठापित हो चुका है। अनेक विश्वविद्यालयों में जनसंचार एवं पत्रकारिता के विभिन्न पाठ्यक्रम चल रहे हैं जिनसे प्रशिक्षित होकर आए लोग इस पेशे से जुड़कर अपार ख्याति अर्जित कर रहे हैं। पहले न तो कोई प्रशिक्षण की व्यवस्था थी और न इसे कमाई का साधन ही बनाया गया था। सम्पादन कला क्या होती है, इससे किसी का कोई सरोकार नहीं था। सम्पादन की कार्यशैली क्या और कैसी हो, इस सम्बन्ध में सूरत से प्रकाशित 'जैन मित्र' लिखता है'सम्पादक का कार्य केवल बाहर से आए हुए लेखों का संग्रह कर, छाप कर प्रकाशित कर देने मात्र का ही नहीं है वरन् उसका कार्य देश, जाति, धर्म, मान, मर्यादा, राज्य नीति पर प्रतिसमय बुद्धि दौड़ती हुई रखकर अतुल परिश्रम करने का है। उसके ऊपर उक्त सब बातों का भार है। अत: जिस पुरुष में इतने भार उठाने का बल है वही सच्चा सम्पादक कहा जा सकता है। ___डॉ. संजीव भानावत ने अपने शोध ग्रन्थ 'सांस्कृतिक चेतना और जैन पत्रकारिता' में पत्रकारिता के इतिहास को तीन खण्डों में विभाजित किया है -- (1) प्रथम युग सन् 1880 से 1900 (2) द्वितीय युग सन् 1901 से 1947 (3) तृतीय युग सन् 1948 से आज तक प्रथम युग (सन् 1880 से 1900 तक) इस काल में प्रकाशित जैन गजट, जैन मित्र, जैन बोधक, जैन दिवाकर, जैन पत्रिका, जैन हितैषी तथा सनातन जैन जैसी पत्र-पत्रिकाएं प्रमुख हैं। द्वितीय युग (सन् 1901 से 1947 तक) इस युग में दिगम्बर जैन, श्रीजैन सिद्धान्त भास्कर, जैन प्रकाश, प्रगति आणि जिनविजय, अहिंसा, जैन जगत्, जैन प्रभात, वीर, जैन प्रदीप, संगम, जैन सन्देश, जिनवाणी, सनातन जैन, जैन महिलादर्श, आत्मधर्म,