Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti

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Page 186
________________ जैन गणित का वैशिष्ट्य - डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर बहुभिर्विप्रलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे। यत्किंचिद्वस्तु तत्सर्व गणितेन् बिना नाहि।। (ग.सा.सं. 1/16) मूर्धन्य भारतीय गणितज्ञ आचार्य महावीर (814-817 ई.) का यह कथन यद्यपि अपेक्षाकृत बाद का है; किन्तु यह ज्ञान के क्षेत्र में गणित की अपरिहार्यता को बहुत सक्षम रूप में व्यक्त करता है। नवीं शताब्दी ई. के इस जैनाचार्य ने पाठ्य पुस्तक शैली में लिखित अपनी विश्वविख्यात कृति 'गणितसार संग्रह' में यह कथन करके परोक्ष रूप से जैनधर्म, दर्शन आदि के क्षेत्र में भी गणित की अतिमहत्त्वपूर्ण स्थिति की ओर इंगित किया है। वास्तविकता तो यह है कि गणित के सम्यक् ज्ञान के बिना जैन-दर्शन को भली प्रकार आत्मसात ही नहीं किया जा सकता। इसी बात को १८वीं शताब्दी ई. के जैन विद्वान् पं. टोडरमल (1740.1767 ई.) ने 'त्रिलोकसार' ग्रन्थ की पूर्व पीठिका में लिखा है कि -- ___ 'बहुरि जे जीव संस्कृतादिक के ज्ञान सहित है; किन्तु गणिताम्वायादिक के ज्ञान के अभाव ते मूल ग्रंथ या संस्कृत टीका विषै प्रवेश न करहुँ, तिव भव्य जीवन काजे इन ग्रंथन की रचना करी है।' ___पं. टोडरमलजी का यह कथन इस बात की पूर्णरूपेण पुष्टि करता है कि गणित एवं गणितीय प्रक्रियाओं को सम्यक् रूप से समझे बिना मूल ग्रन्थों एवं आगमों की विषय-वस्तु को ठीक प्रकार से नहीं जाना जा सकता। जैन- शास्त्रों में जिन बहत्तर कलाओं का उल्लेख मिलता है उनमें सर्वप्रथम स्थान लेख का एवं दूसरा गणित का है तथापि आगमों में प्राय: इन कलाओं को लेहाइओ गणियप्पहाणाओ' अर्थात् लेखादिक; किन्तु प्रधान कहा गया है। मात्र इतना ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जैन वाङ्मय के विषयानुसार विभाजन के क्रम में उसे चार अनुयोगों में निम्नप्रकार विभाजित किया जाता है। दिगम्बर-परम्परा के अनुसार 1. प्रथमानुयोग- तीर्थङ्करों एवं अन्य महापुरुषों के जीवन-चरित्र, पूर्वभवों का विवरण एवं कथा-साहित्य। 2. करणानुयोग- लोक का स्वरूप, आकार-प्रकार, कर्म-सिद्धान्त एवं गणित विषयक साहित्य। 3. चरणानुयोग- मुनियों एवं श्रावकों की चर्या तथा आचार विषयक साहित्य 4. द्रव्यानुयोग- अध्यात्म, आत्मा एवं परमात्मा विषयक दार्शनिक- साहित्य, न्याय एवं अध्यात्म के ग्रन्थ। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार 1. धर्मकथानुयोग- इसमें तीर्थङ्करों का जीवन, पूर्वभव एवं धार्मिक कथाओं से सम्बद्ध साहित्य। 2. चरण-करणामुयोग- आचार एवं गणित विषयक साहित्य। 3. गणितानुयोग- खगोल विषयक साहित्य -176.

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