Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ विवेचन हैं। इस भूवलय ग्रन्थ में एक सन्दर्भ में आकाशगता प्रयोग की विधि आयी है। सिरिभूवलय में एक स्थान पर आया है कि यदि एक मुनिराज 24 घण्टे में 22 घण्टे कार्य करते हैं तो वे 170 वर्ष में इसे पूर्ण कर पायेंगे अर्थात् एक प्रोफेसर दिन में 7-8 घण्टे कार्य करता है तो 510 वर्ष में इसका कार्य पूर्ण हो पायेगा। यदि इन्दौर निवासी आदरणीय काका साहब श्री देवकुमासिंह जी कासलीवाल की व्यक्तिगत रुचि इसमें न होती तो इतना कार्य भी कदापि नहीं हो सकता था, अतः इस कार्य को प्रारम्भ करने का पूर्ण श्रेय उन्हें ही जाता है। .-175