Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ को समान रूप से मान्य है। अतएव इनके पश्चातवर्ती अनेक आचार्यों ने उनका यथावत् अनुकरण किया है। कवि धनञ्जय ने तो अपनी नाममाला में लिखा है प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम्। धनंजयकवेः काव्यं रत्नत्रयमपश्चिमम्।। दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रान्त के ब्राह्मण परिवार में जन्में नौवीं शताब्दी के आचार्य विद्यानन्द ने प्रमाण व दर्शन-सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना करके श्रुत-परम्परा को विशेष गतिशील बनाया। आपके न्याय-सम्बन्धी मौलिक ग्रन्थ हैं- आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञवृत्तिसहित, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा तथा टीका ग्रन्थ हैं- अष्टसहस्री, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक व युक्त्यनुशासनालंकार। - इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन न्याय के विकास में दक्षिण भारत के जैन आचार्यों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। -166