Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti

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Page 177
________________ तमिल जैन-साहित्य को श्रमणों की देन - पं. सिंहचन्द्र जैन शास्त्री, चेन्नई तमिल जैन-साहित्य में श्रमण शब्द जैनियों के लिए ही उपयोग किया गया है। श्रमणों को तमिल में शमणर कहते है। श्रमणों ने तमिलनाडु में तीन तरह के कार्य किये हैं(१) जैन तात्त्विक और साहित्यिक विषयों का तमिल-भाषा में विशाल साहित्य का प्रणयन किया। (2) मतमिल-भाषा में व्याकरण, कोष आदि का गठन तथा पा-साहित्य का प्रणयन किया। (3) सम्पूर्ण मानव जाति को सदाचरण के मार्ग पर चलने हेतु अनेक नीति ग्रन्थों का तमिल-भाषा में प्रणयन। श्रमणों की साहित्य सेवा प्राय: तमिल जनता को सन्मार्ग पर लाने की दृष्टि से हुई है। इसके लिए कुछकुछ ग्रन्थ उपलब्ध हैं, वे यों हैं- (1) पदिणेन कील कणक्कु, नालडियार, अरणेरिचारं, तिरुपञ्चमूलं आदि है। (4) तमिल जैन-साहित्य दो श्रेणी में विभाजित है– (1) लघुकाव्य, (2) बृहद्काव्य। इसके अलावा अनेक स्फुट ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं, इसका विवरण मूल वृहद् निबन्ध में दिया जायगा। (5) धर्म मार्ग बताने के लिए श्रमणों ने साहित्यिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण अर्थगर्भित विषयों को पा और ग / के रूप में गठन किया है। अबोध जनता के लिए ज्ञानवृद्धि के निमित्त अनेक सारगर्भित ग्रन्थों की रचना की है। इस बात को “तेल काप्पियम्” नामक व्याकरण-ग्रन्थ में देख सकते है। यह ग्रन्थ ईस्वी पूर्व प्रथम व द्वितीय शताब्दी का है। (6) गणित विषयों को मालूम कराने के लिए व जानकारी के लिए गणित पहाड़े और संख्या सम्बन्धित पुस्तकें भी लिखी गयीं। इन पुस्तकों में भी धर्म सम्बन्धित विषय निहित है। उस विषय का तमिल रूप देखिये। वनमदि मुक्कुडयान मलरडि तोलुताल नेल वाणी लक्कम नेञ्जिनिलवरुमे इसका हिन्दी भाषान्तर ये हैं- “प्रकाशमान त्रिछत्र जिसके ऊपर स्थित हैं। उनके चरणों की उपासना से संख्या लक्षण ज्ञान मन में लक्षित होगा।" -167 -

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