Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ स्वतन्त्रता संग्राम में दक्षिण भारतीय जैन महिलाओं और पुरुषों का योगदान - डॉ. ज्योति जैन, खतौली हम सबके लिए यह गौरव की बात है कि जिन भगवान् बाहुबली के महामस्तकाभिषेक के शुभ अवसर पर विद्वत् संगोष्ठी में सम्मिलित होने का अवसर मिला है, वे भगवान् बाहुबली राष्ट्र स्वातन्त्र्य-सन्देश के संवाहक हैं। अहिंसक युद्ध परस्पर विरोधी बात लगती है, पर इतिहास साक्षी है कि एक ऐसा युद्ध भी हुआ जो पूर्णत: अहिंसक था। भरत- बाहुबली के बीच राज्य विस्तार की सीमा को लेकर युद्ध होने की नौबत आ गयी तब मन्त्रियों का प्रस्ताव मानकर दोनों में मल्ल, जल और दृष्टियुद्ध हुआ, जिसमें बाहुबली विजयी हुए, पर उन्होंने जीत कर भी संसार त्याग कर, आत्मकल्याण के मार्ग को चुना। इसी अहिंसक युद्ध से प्रेरणा लेकर महात्मा गांधी ने अहिंसा के बल पर देश को आजादी दिलायी, जो अपने आप में विश्व का अकेला उदाहरण है। मेरा यह परम सौभाग्य है कि आज भगवान् बाहुबली के चरणों में 'स्वतन्त्रता संग्राम में दक्षिण भारतीय जैन महिलाओं और पुरुषों का योगदान' विषय पर यहाँ बोलने का अवसर मिल रहा है। मानव संस्कृति के समुन्नयन में जिन महापुरुषों का महनीय योगदान रहा, उनमें तीर्थङ्कर ऋषभदेव अग्रगण्य हैं। उन्हीं के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। ऋषभदेव ने राज्य-व्यवस्था का सूत्रपात किया। आज हमारे देश में जो गणतन्त्र-परम्परा है उसके जनक भी भगवान् महावीर के पिता, पितामह आदि रहे हैं। अनेक शक्तिशाली जैन सम्राट रहे हैं। अनेक राजाओं के मन्त्री, दीवान, भण्डारी, सामन्त, सरदार आदि भी जैन रहे हैं। मेवाड़ राज्य के दुर्गपाल आशाशाह और देशोद्धारक भामाशाह आदि के अवदान को कैसे विस्मृत किया जा सकता है? दक्षिण-भारत के गंगवंश, कदम्ब, पल्लव, चालुक्य, राष्ट्रकूट, चोल,कलचुरि आदि वंशों के राजाओं के आश्रय में जैनधर्म फला-फूला। दक्षिण-भारत के शक्तिशाली होयसल वंश की स्थापना जैनाचार्य सुदत्त के आशीर्वाद से हुई थी। इसी वंश में पट्ट महादेवी शान्तला जैसी महारानी हुई, जिन्होंने श्रवणबेलगोल में आकर समाधिमरण किया था। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सम्पूर्ण भारत के जैन समाज ने महनीय योगदान दिया था। स्वतन्त्रता की इस लड़ाई में जैनियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। अनेक वीरपुरुष शहीद हो गये और हजारों लोगों को जेल की यातनायें सहनी पड़ी। ऐसे भी लोगों का अवदान था, जिन्होंने तन, मन, धन से इस आन्दोलन का समर्थन किया और जेल गये व्यक्तियों के परिवारों के भरण-पोषण की व्यवस्था की। जैन समाज ने जितना आर्थिक सहयोग इस आन्दोलन में दिया शायद ही किसी ने दिया हो। स्वाधीनता की इस लड़ाई में पूरा देश एक लम्बे समय तक संघर्ष करता रहा। दक्षिण-भारत की जैन समाज ने भी इस लड़ाई में महनीय योगदान दिया था। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को इस लेख में 'दक्षिण-भारत' के रूप में परिभाषित किया जा रहा है।