Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
View full book text
________________ हैं। 12 वर्षीय दुर्भिक्ष काल में चन्द्रगुप्त सहित दक्षिण देश की ओर चले जाते हैं। ये जैनधर्म की परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखते हैं। दुर्भिक्ष काल में जो दक्षिण की ओर नहीं गये, उनकी धार्मिक क्रिया में शैथिल्य आ जाता है। परिणामस्वरूप जैन शासन में भेद हो जाता है। विक्रमादित्य राजा के बाद ही श्वेताम्बर मत शुरु होता है। ___महाकवि ब्रह्म जिनदास के शब्दों में- पञ्चमश्रुतकेवली गुरु भद्रबाहु संसार सागर से तारने वाले धर्मरूपी नौका थे। वे तत्त्ववेत्ता, निम्रन्थ मुनि-परम्परा के सच्चे संवाहक और जिनधर्मशासन के उद्योत के कारक स्वरूप थे। ऐसे निर्मल महामुनि का ध्यान कर मैंने इस निर्मल रास की रचना की है, जो शिवपुर (सिंद्धालय) का गान (मार्ग) है। भद्रबाहुमुनि भद्रबाहुमुनि संघ धुरि सार।। पंचम श्रुतकेवलीगुरु, धरम नांव संसार तारण। दिगम्बर निग्रंथमुनि, जिनशासन उद्योतकारण।। ए मुनिवर अम्हे ध्याइस्युं, कहीयुं निरमल रास। ब्रह्म जिणदास इणि परिभणे, गाई सिवपुर वास।। -136 -