Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ श्रवणबेलगोला के शिलाशासन - पं० भरत कुमार काला, मुम्बई शिलाशासन या शिलालेख उसका नाम है जिसपर तत्कालीन घटनाओं का उल्लेख कर लिखा जाता है। ये आलेख पत्थरों, लकड़ियों, पेपरों या ताडपत्रों पर अंकित किए जाते हैं, और पाये जाते हैं। ये ऐसे दस्तावेज होते हैं जिससे भाषा, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, समाज एवं उसकी व्यवस्था आदि पर प्रकाश डालते है। ये दस्तावेज बड़े मूल्यवान् एवं महत्त्वपूर्ण होते हैं। किसी भी प्रकार की व्यवस्था की प्राचीनता एवं महत्ता का मूल्यांकन तथा परिस्थिति का आकलन इन दस्तावेजों-शिलालेखों से किया जाता है। विश्वभर में इस प्रकार के बहुमूल्य शिलालेख यत्र-तत्र बिखरे हुए लाखों की संख्या में है। सभी देशों में पुरातत्त्व एक ऐसा स्वतन्त्र विभाग है जो इन्हीं दस्तावेजों की खोज करता है और उसपर प्रकाश डालने का एवं संरक्षण का उत्तरदायित्व निभाता है। जैन संस्कृति, साहित्य, इतिहास, भाषा, एवं समाज की समय व्यवस्था पर प्रकाश डालनेवाले शिलालेख सर्वत्र प्रचुर मात्रा में फैले हुए या गढे हुए हैं जो खोदाई के बाद सामने आते हैं। / कर्नाटक प्रदेश में श्रवणबेलगोला एक ऐसा जैन तीर्थ है जहाँ पर तथा आस-पास में हजारों की संख्या में शिलालेख अंकित है। श्रवणबेलगोला एक स्थान है जहाँ पाँच सौ से भी अधिक शिलालेख पुरातत्ववेत्ताओं की दृष्टि में आये है। श्रवणबेलगोला में प्राप्त इन शिलालेखों को संगृहीत कर कर्नाटक सरकार के सहयोग से ‘एपिग्राफिक कर्नाटिका' नामक वाल्यूम दो के रूप में प्रकाशित कर विश्व के पटल पर सबके जानकारी हेतु रख दिया गया है। भारत पर जिस समय अंग्रेजों का शासन था उस समय इनके शासनकाल में श्री बी.एल. राइस नामक एक अंग्रेजी विद्वान् का श्रवणबेलगोला जैन तीर्थ पर स्थान-स्थान पर पहाड़ों की चट्टानों पर उकेरित शिलालेखों की ओर सर्वप्रथम ध्यान गया और उन्होंने ही सर्वप्रथम 144 शिलालेखों को ढूंढ़ निकाल कर उस पर संशोधनात्मक प्रकाश डालते हुए अनेकों तथ्यों का परिचय विश्व पटल पर रखा। यह कार्य ई.स. 1889 में हुआ। यह कार्य आगे भी यथावत चलता रहा। मैसर विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में यह कार्य आगे बढ़ा। पुरातत्व के प्रमुख अधिकारी के रूप में नियुक्त श्री आर. नरसिंहाचार्य के निर्देशन में ई.स. 1923 में श्रवणबेलगोला जैन तीर्थ से करीब 364 शिलालेखों को प्रकाश में लाया गया और इन्हें भी संगृहीत किया गया। इस तीर्थ पर जब-जब भी पुरातत्त्ववेत्ताओं का ध्यान गया तब-तब हर समय और-और शिलालेख सामने आते रहे, आ रहे है। ई.स. 1965/1967 में श्री एस. शेट्टर ने 36 शिलालेख खोज निकाले। देशभर के शिलालेखों में बहुतायत शिलालेख श्रवणबेलगोला में केन्द्रित है। इतने शिलालेख एक साथ अन्यत्र नहीं मिलते। -120.