Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ बाहुबली की राजधानी पोदनपुर तक्षशिला - प्रो. प्रेमसुमन जैन, उदयपुर तक्षशिला में बाहुबली का राज्य था, इसका उल्लेख प्राकृत के प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध है। आचार्य विमलसूरि के पउमचरियं में कहा गया है कि बाहुबली तक्षशिला के राजा थे, जो कि राजा भरत के प्रतिकूल थे और वे उनकी आज्ञा नहीं मानते थे तक्खसिलाए महप्या बाहुबली तस्स निच्च पडिकूलो। भरहनरिन्दस्स सया, न कुणइ आणा-पमाणं सो।। - (पउमचरियं, 4.38) आवश्यकनियुक्ति (पृष्ठ 180-181) में कहा गया है कि उस उत्तरापथ में बाहुबली की राजधानी तक्षशिला थी- 'तत्त रायहाणी तक्खसिला नाम।' इस ग्रन्थ के अनुसार भगवान्ऋषभदेव भी बाहुबली की राजधानी तक्षशिला गये थे। यथा ततो भगवं विहरमाणो बहलीविसयं गतो। तत्थ बाहुबलिस्स रावहाणी तक्खसिला णाम।। / / - (आवश्यकसूत्र नियुक्ति, पृ. 180-81) अर्थ- तब वे भगवान् वृषभ बहली प्रदेश में विचरण करते हुए बाहुबली की राजधानी तक्षशिला की ओर प्रस्थान कर गये। आचार्य पूज्यपाद ने निर्वाणकाण्ड में, पोदनपुर में बाहुबली की वन्दना करने का उल्लेख किया है'बाहुबलि तह वंदामि पोदनपुरे।' यह पोदनपुर तक्षशिला का प्राचीन नाम है। प्रसिद्ध विद्वान् प्रो. सी.डी. दलाल ने 'भविसयत्तकहा' की प्रस्तावना में पोदनपुर और तक्षशिला को एक ही नगर माना है। उन्होंने कहा है कि शक राजाओं ने तक्षशिला पर राज्य किया था. इसलिए इसे शाकेय नगरी भी कहा जाता था। प्रसिद्ध आगम विद्वान् मुनि जिनविजयजी ने भी अपना अभिमत व्यक्त किया है कि 'पोदनपुर तक्षशिला का दूसरा नाम प्रतीत होता है। विमलसूरि के ‘पउमचरियं' में जहाँ-जहाँ तक्षशिला नाम आता है, वहाँ-वहाँ उसी के भाषान्तर स्वरूप पद्मपुराण में ‘पोदनपुर' नाम है। पोदनपुर और तक्षशिला दोनों की अवस्थिति सिन्धदेश के उत्तर में निश्चित होती है। लगता है तक्षशिला के निकट ही पश्चिमोत्तर में गान्धार की ओर पोदनपुर की अपनी स्वतन्त्र स्थिति रही और तब तक तक्षशिला का प्रादुर्भाव ही नहीं रहा होगा। दिगम्बर मान्यता में स्वीकृत उसी पोदनपुर नगर को बाद में श्वेताम्बर-परम्परा द्वारा तक्षशिला नाम दे दिया गया होगा। हरिषेण कथाकोष (कथा 23) के पोदनपुर के सम्बन्ध में साधारण-सा संकेत इस प्रकार दिया -105 -