Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ राज्य का लोभ और भरत के प्रति क्रोध को त्याग कर पिताजी के मार्ग पर चलते हुए दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए। यदि यह राज्यलक्ष्मी ही सम्पूर्ण सुखदायक होती तो पिताजी इसका त्याग क्यों करते? मुझे तुरन्त इसका त्याग करना चाहिए।' ऐसा ही आत्मचिन्तन और आत्मनिन्दा का भाव भरत के मन में भी अन्त में प्रस्तुत हुआ है। इस प्रकार यह एक उत्तम चरित्र काव्य कृति है जिसमें बाहुबली के उज्ज्वल, वीरतापूर्ण एवं त्यागमय जीवन की कथा अंकित है। -104