Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ कृति में ऐसा उल्लेख है कि जब बाहुबली भगवान् आदिनाथ के विहार करने के कारण दर्शन नहीं कर सके तब मन्त्री ने उन्हें अनेक उदाहरण देकर समझाया और उनकी चरणपादुका की पूजा करने की सलाह दी एवं बाहुबली ने वज्र एवं मत्स्यादी से चिह्नित परमात्मा की दोनों चरणपादुकाओं का निर्माण कराया और चरणों की आसातना न हो इसलिए एक योजन ऊँचा, आठ योजन विशाल सहस्र किरणों से सूर्य की तरह चमकदार रत्नत्रय धर्मचक्र की स्थापना करायी। कृति में ऐसा उल्लेख है कि भगवान् आदिनाथ ने बाहुबली को तक्षशिला का राज्य प्रदान किया था। दिग्विजय करने निकले भरत का वर्णन प्राय: सभी ग्रन्थों में समान ही है। भरत भी बाहुबली को अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए सन्देश भेजते है और बाहुबली भी उससे मना करते हैं और युद्ध करने के लिए तत्पर होते है, परन्तु उससे पूर्व उनके मन में एक प्रश्न हमेशा उमड़ता रहता है कि जब हमने उनका कोई नुकसान नहीं किया तो वे हमें इस प्रकार मजबूर क्यों कर रहे हैं? जब हम पूरी कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें दिगम्बर और श्वेताम्बर मान्यताओं में कुछ तथ्यों में स्पष्ट अन्तर दिखायी देता है, जो इस प्रकार है जैसाकि पहले उल्लेख कर चुके हैं कि भगवान् बाहुबली का चरित्र सभी सम्प्रदायों में लगभग समान है, परन्तु कुछ अन्तर भी दृष्टव्य है। दिगम्बर सम्प्रदाय में आचार्य जिनसेन का आदिपुराण सर्वमान्य पुराण है। इसमें भी भरत और बाहुबली के चरित्र को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कभी-कभी अमरचन्द की कृति को पढ़ते समय लगता है कि उन पर आदिपुराण का प्रभाव परिलक्षित है। जैसे बाहुबली द्वारा भरत के चक्र को एक कुम्हार का चक्र कहना आदि अनेक प्रसंगों में साम्यता है। यद्यपि युद्ध में दोनों पक्षों के नुकसान की चिन्ता प्रस्तुत हुई है। इसी प्रकार बाहुबली का वैराग्य और कैलाश पर पहुँचना सभी समान है, परन्तु दृष्टव्य अन्तर यह है कि जहाँ अमरचन्दजी ने बाहुबली के पास सुवेग नामक दूत को अपना सन्देश देकर भेजा वहाँ आदिपुराण में किसी दूत का नाम नहीं है। दूसरे अमरचन्दजी ने बाहुबली की राजधानी तक्षशिला अंकित किया है, जबकि आदिपुराण में यह पोदनपुर के नाम से उल्लिखित है। जहाँ अमरचन्दजी की कृति में इस युद्ध के विनाश की चिन्ता देवतागण करते हैं और देवतागण ही दोनों को समझाने का प्रयत्न करते हैं, और सफल भी होते हैं। वहाँ दिगम्बर सम्प्रदाय में देवताओं द्वारा समझाने के स्थान पर दोनों तरफ वे राजा, मन्त्रीगण युद्ध के विनाश पर चर्चा करके दोनों को समझाते भी हैं और युद्ध टालने के लिए मात्र दोनों के युद्ध की सम्मति प्राप्त करते हैं। जहाँ श्रीअमरचन्दजी ने दोनों सेनाओं के आमने-सामने आने पर युद्ध का वर्णन किया है एवं अनेक योद्धाओं की मृत्यु आदि का वर्णन किया है वहाँ दिगम्बर शास्त्रों में किसी भी युद्ध का प्रारम्भ नहीं बताया है अपितु युद्ध से पहले ही दोनों पक्षों को यह समझाने का वर्णन है कि वे दोनों ही तीन प्रकार के युद्ध से निर्णय कर लें ताकि विशाल जनसंहार रोका जा सके। जहाँ अमरचन्दजी या श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार दृष्टियुद्ध, वाग्युद्ध, भुजायुद्ध, मुष्टियुद्ध एवं दण्डयुद्ध की योजना है वहीं दिगम्बर सम्प्रदाय में मात्र जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध और मल्लयुद्ध या बाहुयुद्ध की चर्चा है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में जलयुद्ध की चर्चा नहीं है जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय में वाग्युद्ध, मुष्टियुद्ध और दण्डयुद्ध इन तीन की चर्चा नहीं है। इसी प्रकार जब बाहुबली को पूरा एक -101