Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti

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Page 108
________________ 1. 3. दिगम्बर-परम्परा में पुनाटसंघीय जिनसेन के हरिवंशपुराण और स्वयम्भू के पउमचरिउ तथा रविषेण के पद्मपुराण को छोड़कर प्राय: किसी ने भी भरत-बाहुबली की सेनाओं के बीच युद्ध होने का उल्लेख नहीं किया। श्वेताम्बर-परम्परा में भी वसुदेवहिण्डी, आवश्यकचूर्णि, चउप्पन्न महापुरिसचरिय और त्रिषष्टिशलाकामहापुरुषचरित्र दोनों सेनाओं के बीच हुए किसी युद्ध का उल्लेख नहीं करते जबकि विमलसूरि का पउमचरिय, शालिभद्रसूरि का भरतेश्वर बाहुबली रास तथा पुण्यकुशलगणि का भरत-बाहुबली महाकाव्य इस प्रकार के युद्ध का उल्लेख करते हैं। 2. हिंसक युद्ध से विरत रहने के लिए दिगम्बर-परम्परा में जिनसेन का आदिपुराण और स्वयम्भू का पउमचरिउ यह उल्लेख करते हैं कि अहिंसक युद्ध का प्रस्ताव मन्त्रीगण करते हैं, परन्तु रविषेण के पद्मपुराण में स्वयं बाहुबली से यह प्रस्ताव रखाया गया है। श्वेताम्बर-परम्परा में भी ये दोनों परम्पराएं मिलती हैं। आवश्यकचूर्णि, चउप्पन्नमहापरिसचरिय (शीलांक) एवं पउमचरिय (विमलसूरि) में बाहुबलि स्वयं अहिंसक प्रस्ताव रखते दिखायी देते हैं जबकि त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (हेमचन्द्र) भरतेश्वर बाहुबलि रास व भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति में यह कार्य देवगणों से कराया गया है। दिगम्बर-परम्परा प्राय: बाहबलि के मन में मानकषायरूपी शल्य के अस्तित्व की बात करती है जिसके कारण उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाती पर जैसे ही तीर्थङ्कर ऋषभदेव से इस शल्य का पता चलता है, भरत स्वयं बाहबलि के पास जाकर, ससम्मान इस शल्य का निराकरण करते हैं। बाहुबलि इससे सन्तुष्ट होकर निःशल्य होकर केवलज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु श्वेताम्बर-परम्परा में बाहुबली में मानकषाय की शल्य का होना तो सभी आचार्यों ने माना है पर उसे दूर करने के लिए ऋषभदेव की दोनों पुत्रियां (ब्राह्मी और सुन्दरी) साध्वियां अपने भाई बाहुबलि के पास उद्बोधन देने पहुंचती हैं और उनका उद्बोधन पाकर बाहुबलि निःशल्य हो जाते हैं, केवलज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। दिगम्बर-परम्परा में आर्यिका के द्वारा किसी श्रमण भिक्षु के लिए उद्बोधन की परम्परा दिखायी नहीं देती। 4. दिगम्बर-परम्परा में साधारणत: दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध का उल्लेख आता है जबकि श्वेताम्बर-परम्परा में पांच युद्धों का वर्णन मिलता है - दृष्ट, मुष्टि, स्वर, बाहु और यष्टि या दण्डयुद्ध। इस तरह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी भाषाओं में अभी तक भगवान् बाहुबलि पर प्रकाशित साहित्य का एक संक्षिप्त मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। अभी कतिपय ऐसी भी अनेक कृतियां होगी जो हमारे दृष्टिपथ में न आई हों। इसका तात्पर्य यह नहीं कि वे स्तरीय नहीं हैं। वस्तुतः यह हमारी अज्ञानता और अजानकारी का फल है कि हम उन्हें प्राप्त नहीं कर सके। - -

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