Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ तीर्थङ्कर नेमिनाथ एवं उनकी ऐतिहासिकता - डॉ. विजयकुमार जैन, लखनऊ बीसवें तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ के समय मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्रजी हुए और नारायण श्रीकृष्ण के समकालीन २२वें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमि। विद्वज्जन श्रीकृष्ण और तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि को ऐतिहासिक महापुरुष मानते हैं। 'यजुर्वेद' आदि वैदिक-ग्रन्थों में भी अरिष्टनेमि का उल्लेख हुआ है और पुराणों से स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण के समकालीन एक अरिष्टनेमि नामक ऋषि थे।२ 'महाभारत' में भी उनका उल्लेख है। वहाँ वह निम्नप्रकार सगर नामक एक राजा को उपदेश देते हैं। ___संसार में मोक्ष का ही सुख वास्तविक सुख है; जिसकी बुद्धि विषयों में आसक्त है, उसका मन अशान्त होता है, स्नेह बन्धन में बंधे हुए अज्ञानी को मोक्ष नहीं हो सकता। तुम न्यायपूर्वक इन्द्रियों से विषयों का अनुभव करके उनसे अलग हो जाओ और आनन्द के साथ विरते रहो। इस बात की परवाह न करो कि सन्तान हुई है या नहीं ....... प्राणी स्वयं जन्म लेता है, स्वयं बढ़ता और स्वयं ही सुख-दुःख तथा मृत्यु को प्राप्त होता हैं। मनुष्य पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार भोजन, वस्त्र तथा अपने माता-पिता के द्वारा संग्रह किया हुआ धन प्राप्त - करते हैं।'३ इस उपदेश में निम्नलिखित बातें दृष्टव्य हैं - (1) मुक्ति के लिए सन्तान आवश्यक नहीं। भगवान् नेमिनाथ के समय पुत्र का होना सद्गति के लिए सन्तान माना जाता था, इसलिए उन्होंने उसका निषेध किया था। अम्बादेवी कथानक से यह स्पष्ट है। (2) वैयक्तिक स्वातन्त्र्य की धारणा जैसे इस उपदेश में की गयी है, ठीक वैसा ही उपदेश तीर्थङ्कर नेमि ने दिया था। (3) अन्ततः कर्मवाद का निरूपण जैनधर्म की विशेषता है। इसके आगे 'महाभारत' में जो उपदेश अरिष्टनेमि ने दिया उससे भी स्पष्ट होता है कि लेखक जैन मान्यता को अपनाकर उपदेश दे रहा है. क्योंकि इसमें क्षधा, तुषा, राग, द्वेष आदि को जीतने वाले को मुक्त पुरुष कहा है और उसकी साधना के लिए सप्तव्यसनादि के त्याग का उपदेश दिया हैं। इन बातों से भासता है कि 'महाभारत' में तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि का ही उल्लेख किया गया है। अत; श्रीकृष्ण जी के साथ तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि को विद्वज्जन ऐतिहासिक पुरुष ठीक ही मानते हैं। उनकी एक मूर्ति कुषान सं. 18 की कंकालीटीला मथुरा में मिली है। कृष्ण वासुदेव और तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि ___जैन परम्परागत साहित्य में कृष्ण वासुदेव के सम्बन्ध में एक और विशिष्ट तथ्य का वर्णन है। वह यह कि कृष्ण बाईसवें तीर्थङ्कर अर्हत् अरिष्टनेमि के न केवल समकालीन थे, अपितु उनके चचेरे भाई भी थे। आगमिक कृतियों में ऐसे अनेक प्रसंगों का वर्णन है जब अर्हत् अरिष्टनेमि द्वारिका जाते तथा कृष्ण सदल बल