Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ मन का नहीं होना चाहिए। यही तो अनेकान्त है; फिर रंग, जाति, कुल, देश का भेद- भ्रम अपनाकर हिंसा का मार्ग क्यों चुनते हो? वस्तु जैसी है वैसी मानो। यही दर्शन है, यही धर्म है-- 'वत्यु सहावो धम्मो।" भगवान् महावीर का व्यक्तित्व और कृतित्व आज भी समस्त सृष्टि के लिए प्रेरक है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसा सम्पूर्ण देशों का प्रतिनिधि संघ अहिंसा, शान्ति, सह-अस्तित्व और सर्वोदय के लिए कार्य कर रहा है। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने उन्हें राष्ट्रीय नायक के रूप में भारतीय संविधान की मूल प्रति में बंगाल के एक चित्रकार द्वारा निर्मित निर्ग्रन्थ मुद्रायुक्त भगवान् महावीर का चित्र संयोजित किया गया है ताकि सम्पूर्ण देशवासी उनके प्रति श्रद्धान्वित होकर उनके बताये अहिंसा के रास्ते पर चल सकें। आज सम्पूर्ण विश्व का आदर्श महावीर और उनके विचार है, क्योंकि बिना अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त के आदर्श समाज का निर्माण सम्भव नहीं है। ऐसे महिमामय, अनुपम व्यक्तित्व के धनी तीर्थङ्कर महावीर के पश्चकल्याणक सम्पन्न हुए। उनका शास्त्रानुसार वर्णन इस प्रकार है 1. गर्भ कल्याणक- तीर्थङ्कर भगवान् महावीर का जीव पुष्पोत्तर विमान (तिलोय, 4/531) से चलकर कुण्डपुर (वैशाली) नृपति सिद्धार्थ के राजमहल में रानी प्रियकारिणी (त्रिशला) के गर्भ में आया। यह तिथि आषाढ़ शुक्ल षष्ठी थी। महाराजा सिद्धार्थ के नगर कुण्डग्राम या कुण्डलपुर की स्थिति के विषय में डॉ. महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य ने लिखा है कि- “वैशाली के पश्चिम में गण्डकी नदी है। उसके पश्चिम तट पर ब्राह्मण कुण्डलपुर, क्षत्रिय कुण्डलपुर, करमार ग्राम और कोल्लाग सनिवेश जैसे अनेक उपनगर या शाखा ग्राम थे। भगवान् महावीर का जन्म-स्थान वैशाली माना जाता है, क्योंकि कुण्डग्राम वैशाली का ही उपनगर था' (जैनदर्शन : पृ. 5) / आज भी वैशाली स्थित वासोकुण्ड की पहचान भगवान् महावीर की गर्भ/जन्म-भूमि के रूप में की गयी है जिसे वहाँ के स्थानीय जन अहल्ल भूमि के रूप में सदियों से पूजते आ रहे हैं। 2. जन्म कल्याणक-तिलोयपण्णत्ति में यतिवृषभ आचार्य के द्वारा लिखित तीर्थङ्करों के जन्म विवरण के अनुसार वीर जिनेन्द्र कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता प्रियकारिणी (त्रिशला) से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुए। ईस्वी संवत् के अनुसार यह तिथि दि. 27 मार्च, ईसा पूर्व 598 मान्य की गयी है। वे नाथवंश में उत्पन्न हुए थे (तिलोयपण्णत्ति, 4/557) / उनके शरीर की ऊँचाई सात हाथ प्रमाण थी (तिलोयपण्णत्ति, 4/594) / वे स्वर्ण सदृश पीत वर्ण के थे (तिलोयपण्णत्ति, 4/589), उनका चिह्न सिंह था (तिलोय., 4/612) / तीर्थङ्कर भगवान् महावीर के गर्भ और जन्म कल्याणक का स्थान जैन-अजैन शास्त्रों एवं जनश्रुतियों के आधार पर विदेह देशस्थ कुण्डपुर माना जाता है, जिसकी पहचान वर्तमान में भारत देश के बिहार प्रदेशान्तर्गत मुजफ्फरपुर से 22 मील दूर बसाढ़ गाँव में कुण्डपुर 'वासोकुण्ड' के रूप में की गयी है। यह विहार में गंगा नदी के उत्तरवर्ती क्षेत्र में स्थित है। वैशाली से सम्बद्ध होने के कारण ही कहा गया कि -74