Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
View full book text
________________ तीर्थङ्कर पुष्पदन्त और उनकी पञ्चकल्याणक तीर्थभूमियाँ - डॉ. कमलेशकुमार जैन, जयपुर आचार्य समन्तभद्र ने 'जिन' की स्तुति करते हुए उन्हें धर्म-तीर्थ का प्रवर्तक कहा है। तीर्थङ्कर शब्द निर्ग्रन्थ (जैन) परम्परा में रूढ़ हो गया है, वस्तुत: यह शब्द है यौगिक ही, क्योंकि व्यक्ति धर्मरूपी तीर्थ का प्रवर्तक होने के कारण ही तीर्थङ्कर कहा जाता है। नवम तीर्थङ्कर पुष्पदन्त भरतक्षेत्र में उत्पन्न चौबीस तीर्थङ्करों में से एक हैं। तीर्थङ्कर पुष्पदन्त का एक अन्य नाम सुविधि या सुविधिनाथ भी है। तीर्थङ्कर पुष्पदन्त का चिह्न मगर है। इस चिह्न या लांछन के द्वारा ही उनकी पहचान होती है। वर्तमान अन्य तीर्थङ्करों की भाँति तीर्थङ्कर पुष्पदन्त का जीवनचरित भी महिमामण्डित है। जहाँ उनके घर परिवार व राज्य की जानकारी मिलती है, वहाँ उनके एक विशाल संघ समुदाय का भी विवरण पाया जाता है। उनके पञ्चकल्याणक स्थलों (तीर्थों) की भी विस्तृत जानकारी मिलती है। यह विवरण दिगम्बर और श्वेताम्बरपरम्परा के आगम-आगमिक तथा अन्यान्य ग्रन्थों में पाया जाता है। उनका जन्म मगसिर शुक्ला एकम को काकंदी में एवंनिर्वाण भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को तीर्थराज सम्मेदशिखर जी से हुआ था। प्रस्तुत मूल विस्तृत लेख में तीर्थङ्कर पुष्पदन्त के व्यक्तित्व (जीवनचरित) एवं उनके पञ्चकल्याणक तीर्थों का परिचय रेखांकित किया गया है। - 72