Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ ___ द्वीपायन मुनि द्वारका दाह निदान करने पर जाम्बवती के पुत्र शम्बु और पद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध ने संयम धारण कर लिया। वे दोनों प्रद्युम्न मुनि के साथ ऊर्जयन्तगिरि के ऊँचे तीन शिखरों पर आरूढ़ होकर प्रतिमायोग से स्थित हो गये। उन्होंने शुक्लध्यान को पूरा करके घातिया कर्मों का नाश किया और नौ केवललब्धियाँ पाकर मोक्ष प्राप्त किया। ___इससे जिन तीन कूटों का संकेत आया है, उसके अनुरूप आज भी मान्यता प्रचलित है। द्वितीय कूट पर अनिरुद्ध कुमार के चरण-चिह्न बने हुए हैं। तीसरे कूट पर शम्बुकुमार के और चौथे कूट पर प्रद्युम्नकुमार के चरण- चिह्न उत्कीर्ण हैं। पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएँ गिरनार पर अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएँ घटित हुई हैं, जिनका विशेष महत्त्व है। चतुर्थ श्रुतिकेवली गोवर्धनाचार्य गिरनार की यात्रा के लिए गये थे। अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु ने भी यहाँ की यात्रा की थी। इनके पश्चात् एक महत्त्वपूर्ण घटना का गिरनार के साथ सम्बन्ध है, जिसके द्वारा जैन वाङ्मय का इतिहास जुड़ा हुआ है। वह घटना इस प्रकार है - धरसेनाचार्य गिरनार की चन्द्रगुफा में रहते थे। नन्दिसंघ की प्राकृत पट्टावली के अनुसार वे आचारांग के पूर्ण ज्ञाता थे। उन्हें इस बात की चिन्ता हुई कि उनके पश्चात् श्रुतज्ञान का लोप हो जायेगा। उस समय महिमा नगरी में मुनि-सम्मेलन को एक लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी चिन्ता व्यक्त की। फलस्वरूप दो मुनि भूतबलि और पुष्पदन्त उनके पास पहुँचे।। इस प्रकार सिद्धान्त ग्रन्थों की विद्या-भूमि गिरनार ही है। पुष्पदन्त और भूतबलि ने गिरनार की सिद्धशिला पर बैठकर, जहाँ भगवान् नेमिनाथ को मुक्ति प्राप्त हुई थी, मन्त्र-सिद्धि की थी। आचार्य कुन्दकुन्द भी गिरनार की वन्दना करने आये थे। यहाँ केवल दो शिलालेखों या ताम्रपत्रों का उल्लेख करना पर्याप्त होगा। एक शिलालेख कल्लूगुड्ड (शिमोगा परगना) में सिद्धेश्वर मन्दिर की पूर्व दिशा में पड़े हुए पाषाण पर उत्कीर्ण हो जो शक संवत् 1042 (सन् 1121 ई.) का है। उसका सम्बन्धित अंश इस प्रकार है___ हरिवंशकेत: नेमीश्वरतीर्थवतिं सुत्तगिरे गंगकुलांवर भानु पुट्टिदं भा। सुरतेज विष्णुगुप्तनेम्ब नृपालम्। आ-धराधिनाथ साम्राज्यपदवियं कैकोण्डहिच्छत्र- पुरदोलु सुखमिर्दु नेमितीर्थकर-परमदेव-निर्वाणकालदोले ऐन्द्रध्वजवेम्बपूजेयं माडे देवेन्द्रनोसेदु अनुपम दैवावतयं। मनोनुरागदोले विष्णुगुप्तागत्तम। जिनपूजेयिन्दे मुक्तिय। ननर्यमं पडेगसेन्दोलिदटढ़ पिरिदे। - जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, पृ. 406-08 ___ अर्थ- जब नेमीश्वर का तीर्थ चल रहा था, उस समय राजा विष्णुगुप्त का जन्म हुआथा। वह राजा अहिच्छत्रपुर में राज्य कर रहा था, उसी समय नेमी तीर्थङ्कर का निर्वाण हुआउसने ऐन्द्रध्वज पूजा की। देवेन्द्र ने उसे ऐरावत हाथी दिया। विष्णुगुप्त गंगवंश का एक ऐतिहासिक व्यक्ति हुआ है। नेमिनाथ भगवान् का निर्वाण उसके शासनकाल में हुआ था। इससे नेमिनाथ की ऐतिहासिकता असन्दिग्ध हो जाती है। . -64