Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ में है तो धिक्कार है मेरे उस विवाह को, अब मैं विवाह नहीं करूँगा। वे पशुओं को छुड़वाकर तुरन्त ही रथ से उतर कर मुकुट और कंकण को फेंक वन की ओर चल दिये। इस समाचार से बारात में कोहराम मच गया। उधर जूनागढ़ के अन्तःपुर में जब राजकुमारी को यह ज्ञात हुआ, तो वह मूर्छा खाकर गिर पड़ी। बहुत से लोगों ने नेमिनाथ को लौटाने का प्रयत्न किया; किन्तु सब व्यर्थ। वे पास में स्थित ऊर्जयन्तगिरि पर चढ़ गये और सहस्रामवन में वस्त्रालङ्कार आदि परिधान का परित्याग कर दिगम्बर मद्राधर आत्मध्यान में लीन हो गये। तीसरी सन्धि में वियोग का वर्णन है। राजमती ने भी तपश्चरण द्वारा आत्म-साधना की। अन्तिम सन्धि में नेमिनाथ का पूर्ण ज्ञानी हो धर्मोपदेश और निर्वाण प्राप्ति का कथन दिया हुआ है। इस तरह ग्रन्थ का चरित विभाग बड़ा ही सुन्दर तथा संक्षिप्त है और कवि ने उक्त घटना को सजीव रूप में चित्रित करने का उपक्रम किया है। कवि ने इस ग्रन्थ को 10 महीने में समाप्त किया है। ग्रन्थ की सबसे पुरानी प्रति सं. 1510 की लिखी हुई प्राप्त हुई है। इससे इसका रचनाकाल सं. 1510 के बाद का नहीं हो सकता, किन्तु कितना पूर्ववर्ती है यह अन्वेषणीय है। सम्भवत: यह कृति १२वीं या १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए। णेमिणाहचरिउ - कवि दामोदर __णेमिणाहचरिउ के कर्ता कवि दामोदर हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में पांच सन्धियाँ हैं, जिनमें २२वें तीर्थङ्कर भगवान् नेमिनाथ का चरित अंकित किया गया है, जो श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। चरित आडम्बर हीन और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है और कवि उसे बनाने में सफल भी हुआ है। इस चरित रूप काव्य की रचना में प्रेरक एक सज्जन थे जो धर्मनिष्ठ तथा दयालु थे। वे गुजरात से मालव देश के 'सलखणपुर' में आये थे। कवि ने इन्हीं पण्डित रामचन्द्र के आदेश से और नागदेव के अनुरोध से उक्त ग्रन्थ की रचना की थी। कवि ने इस ग्रन्थ को परमारवंशीय राजा देवपाल के राज्य में विक्रम संवत् 1287 में बनाया था। जब दामोदर कवि ने संवत् 1287 में सलखणपुर में णेमिणाहचरिउ रचा, उस समय भी देवपाल जीवित थे। 68