Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
View full book text
________________ जन्मकल्याणक तिथि पर विविधता व जन्मकल्याणक विधि भगवान् के जन्मकल्याणक तिथि के विषय में सर्वमान्य एक धारणा नहीं है। भिन्न-भिन्न मान्य है तथापि प्राय:कर ग्रन्थकारों/लेखकों एवं कविवर वृन्दावनजी (नेमिनाथजी पूजन के रचयिता) ने श्रावण शुक्ला 6 ही मान्य की है। आगे जन्मकल्याणक पर इन्द्र गजों द्वारा आयोजित महोत्सव को चित्रित किया गया है। जन्माभिषेक बाद इन्द्राणी द्वारा प्रभु को वस्त्राभूषण आदि से सुसज्जित करना एवं स्तवन करना दर्शाया है। यादवों द्वारा शौरीपुर का परित्याग व द्वारिका गमन, सहित नेमिकुमार का विवाह वैराग्य जरासन्ध के पुत्रों व भ्राता की मृत्युपरान्त उससे भयाकुलित यादवों ने श्रीकृष्ण जी की सलाह पर शौरीपुर का त्याग कर द्वारिका (सौराष्ट्र प्रान्त में समुद्र के मध्य) को अपना आवास बनाया, नगर संरचना एवं श्रीकृष्ण ही द्वारिकाधीश बने। अनन्तर श्रीकृष्ण द्वारा अपना प्रभुत्व कायम रखने हेतु नेमिकुमार के विवाह की संयोजना एवं वैराग्य चित्रण चित्रित है। राजुल वैराग्य व नेमिकुमार की तपश्चर्या-दीक्षाकल्याणक तिथि में विविधता नेमिकुमार की भावी पत्नी राजुल का परम प्रभावक वैराग्य, अन्तपीडा से संयुक्त एवं सर्वस्व समर्पण का द्योतक है। नेमिकुमार दीक्षा ले तप में लीन हो गये। यहाँ भी दीक्षा कल्याणक तिथि में मतभेद/विचार विविधता दर्शित है। __ तपश्चरण के अनन्तर उसका प्रातिफल वह चराचर पदार्थों का ज्ञायक सम्पूर्ण लोकालोक व्यापी केवलज्ञान है। भगवान् अकर्ता होने से ज्ञाता-द्रष्टापने को प्राप्त होकर आत्मस्थ रहते हैं। केवलज्ञान प्राप्ति के बाद धमोपदेश रूप दिव्यध्वनि सर्वजनहिताय, सर्वजनसुखाय रूप में स्वपर कल्याणकारी होती है। भगवान् का ज्ञानकल्याणक समवशरण रूप धर्मसभा के रूप में इन्द्रों द्वारा आयोजित होता है। समवशरण में दिव्यध्वनि प्रसारित करते हुए आयु के शेषकाल में भक्तों की पुण्य भावनानुसार जगह-जगह प्रभु का धर्मरथ प्रवर्तन होता है। प्रवचन पाकर पाण्डवगण दीक्षित हुए एवं क्रमश: युधिष्ठिर आदि तीन ने मुक्ति व नकुल सहदेव ने स्वर्ग प्राप्ति की। प्रभु का निर्वाणकल्याणक प्रभु ने गिरनार पर्वत से ही निर्वाण की, प्राप्ति की तब इन्द्र ने बज्र से चरण उकेर कर पूज्यता दर्शायी है। शेष जिन भव्य जीवों ने भी इस गिरनार से मुक्ति पायी है उनका कथन किया गया है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उपसंहार आलेख का उपसंहार करने हेतु ऐतिहासिक रूप में प्रभुवर/जिनेन्द्र नेमि का उल्लेख महाभारतादि में हुआ है। वैदिक संस्कृति/अथर्ववेद व बौद्ध-साहित्य में भी अरिष्टनेमि नामोल्लेख है। शिलालेखों में नेमिनाथ का उल्लेख है। शिलालेखों का प्रमाण यहाँ दर्शाया है। गिरनार पर्वत पर भी एक शिलालेख प्रमाणस्वरूप है तथा अन्त में गिरनार पर्वत के विभिन्न नामों का उल्लेख एवं प्राचीन आचार्यों द्वारा गिरनार की वन्दना की गयी, इसके प्रमाण देकर/कथन करते हुए अपनी भावाञ्जलि ‘जैनेन्द्र शासन' को प्रदान करते हुए विश्वकल्याण की भावना व्यक्त की गयी है। -60