Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ तीर्थङ्कर शान्तिनाथ विषयक साहित्य और उनका पावन चरित - पं. शिवचरन लाल जैन, मैनपुरी चौबीस तीर्थङ्करों में विश्ववन्द्य भगवान् शान्तिनाथ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्हें विश्वशान्ति कारक, सर्वदुःखहर्ता के रूप में विशेष ख्याति प्राप्त हैं। उनके विषय में प्रचुर मात्रा में साहित्य की रचना की गयी। गद्य, पद्य दोनों रूपों में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल आदि प्रान्तीय भाषाओं तथा हिन्दी में लिखित उनका पावन चरित और स्तोत्र आदि उपलब्ध हैं। उनके उल्लेख, भक्तियों के परिवेश में आ. कुन्दकुन्द आदि श्रुतधराचार्यों के तथा बृहत्स्वयम्भू स्तोत्र आदि के रूप में प्राचीन वाङ्मय में विद्यमान है। उसके पश्चात् जिनशासन को प्रकाशित करने वाले अत्यन्त मेधावी गुणभद्राचार्यकृत उत्तरपुराण के 62-63 पर्व में भगवान् शान्तिनाथ का चरित्र प्रभावकारी है। प्राप्त अन्य साहित्य प्राय: उसका अन्सारी है। महाकवि असग द्वारा रचित शान्तिनाथ पुराण लगभग उसी समय अथवा उसके निकटवर्ती अन्तराल में लिखा गया काव्य शैली की एक प्रासिद्ध रचना है। हमने अपने उपरोक्त शीर्षक वाले आलेख में कुल 24 ग्रन्थों का उल्लेख किया है। उनमें प्राकृत-भाषा के 'तिसट्ठिलक्खण महापुरिसगुणालंकारु' नामक महनीय ‘महापुराणु' ग्रन्थ के अन्तर्गत सन्धि 60 से 63 तक रचनाकार महाकवि पुष्पदन्त ने भगवान् शान्तिनाथ के जीवन चरित्र को मनोहर छन्द, रस, अलंकारों एवं धर्म विवेचनपूर्ण वैराग्य सहित विशिष्ट भाषा शैली काव्यगत विशेषताओं को लिए हुए आगमानुसार वर्णित किया है। इसके अतिरिक्त महाकवि रइधु ने एक 'संतिणाह चरिउ' अपभ्रंश-भाषा का श्रेष्ठ साहित्योपवन-कसम का प्रणयन किया। यह अपभ्रंश-साहित्य की प्रशंसनीय कृति भगवान् शान्तिनाथ के इतिहास पर काव्य के प्रायः सभी गुणों को समाहित किये जैन वाङ्मय में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। यह बड़ी आकर्षक संवेगिनी, निवेदिनी कथा है। इसमें प्रशस्त कथानायक शान्तिप्रभ के जन्मों के विविध पाश्चों को महाकवि ने ललित रूप में चित्रांकित किया है। ग्यारहवीं शताब्दी में दामनन्दी संज्ञा को धारण करने वाले एक महान् आचार्य हुए हैं, उन्होंने भी अपने पुराणसार संग्रह में १६वें तीर्थङ्कर जिनेन्द्र का पावन चरित वर्णित किया है। गम्भीर एवं रोचक शब्दावली, विविध शब्दालंकारों की छटा मन को मोह लेती है। यद्यपि संक्षिप्त वर्णन है फिर भी यथायोग्य आवश्यक प्रसंगों को सम्यक् स्थान देने का प्रयास रचनाकार ने किया है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश-भाषा के अन्य पुराण व चरित्र ग्रन्थों के अतिरिक्त हिन्दी में लिखे गये ग्रन्थों जैसे चौबीसी पुराण, चौबीस तीर्थङ्कर महापुराण आदि के द्वारा भी लेखकों ने भगवान् शान्तिनाथ के चरित वर्णन के माध्यम से उनको शीश झुकाया है। ऐसा प्रतीत होता है कि विपुल मात्रा में इन कामदेव चक्रवर्ती प्रभु के विषय में लिखा गया होगा; किन्तु वह प्रमादवश या आक्रान्ताओं के विद्वेषवश काल के गाल में समा गया होगा। अवशिष्ट भी सम्पूर्ण एकत्रित रूप में काम चलाने को पर्याप्त है। आवश्यकता है इस वाङ्मय-दर्पण में उद्यमपूर्वक झांकने की। -47