Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ पावन चरित- समग्र साहित्य में भगवान् शान्तिनाथ की 12 तक भवावलि का वर्णन पाया जाता है। आचार्य गुणभद्र के शब्दों में दृष्टव्य है श्रीवेणः कुरुजः सुरः खगपतिर्देवो हलेशामरो। यो वज्रायुषचक्रभृत्सुरपतिः प्राप्याहमिन्द्रं पदं।। पश्चान्मेघरको मुनीन्द्रसहितः सर्वार्थसिद्धिं श्रितः। शान्तीशो जगदेकशान्तिरतुलां दिश्याच्छ्रियं वश्चिरम्।। पर्व 63/504 अर्थात् 1. राजा श्रीषेण, 2. उत्तम भोगभूमिज आर्य, 3. श्रीप्रभदेव, 4. विद्याधर अमिततेज, 5. आनत स्वर्ग में रविचूल देव, 6. अपराजित बलभद्र, 7. अच्युतेन्द्र, 8. वज्रायध चक्रवर्ती, 9. उर्ध्व ग्रैवेयक-अहमिन्द्र, 10. मेघरथ राजा, 11. सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र, 12. शान्तीश प्रभ, इन बारह भवों में क्रमशः प्रकर्ष करने वाले विश्वशान्तिकर्ता जिनेन्द्र हमें चिरशान्ति श्री प्रदान करें। उनके भवों में अपराजित बलभद्र का जीवन अनेकों विचित्र घटनाओं से व्याप्त रहा। भाई अनन्तवीर्य नारायण के साथ दमितारि प्रतिनारायण का वध कर समस्त विद्याधरों पर विजय प्राप्त की। अनन्तवीर्य आगे चलकर उनके भाई चक्रायुध होकर उनके ही गणधर बने। अनन्तवीर्य की मृत्यु से दुःखित हो अपराजित ने यशोधर मुनि से प्रव्रज्या ग्रहण कर समाधिपूर्वक शरीर विसर्जन किया। भगवान् शान्तिनाथ के जीवन से हमें अभ्युदय स्वरूप, श्रेष्ठ मानवीय जीवन, धैर्य, त्याग-तपस्या, वैराग्य एवं धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष पुरुषार्थ द्वारा आत्मस्वरूप प्राप्ति की शिक्षा प्राप्त होती है। हमें निरन्तर आत्मकल्याण की भावना का लक्ष्य रह सकता है। भगवान् शान्तिनाथ की अनेकों विशेषताएँ हैं। भगवान् धर्मनाथ के पश्चात् पाव पल्य तक मोक्ष मार्ग का विच्छेद रहा। उस समय भगवान् शान्तिनाथ ने जन्म लेकर पुन: धर्म का प्रवर्तन किया। उनके निर्वाण के पश्चात् धर्म तीर्थ अविच्छिन्न रूप से अद्यावधि विद्यमान है। वे ही इस हेतु समर्थ हुए, अत: उनका विशेष महत्त्व है। वे पञ्चम चक्रवर्ती पद के धारी, बारहवें कामदेव एवं सोलह तीर्थङ्कर थे, इन तीन पदों को उन्होंने विभूषित किया है। इस तरह मूल शोध आलेख में विस्तार से विवेचन किया गया है। - -