Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ बीसवीं सदी में जहाँ अकेली प्रतिमा अंकित की गयी हैं, उसे पद्मासन में दर्शाया गया है। एक ही फलक पर पद्मासन में कहीं मध्य में पार्श्वनाथ और उसकी दायीं और शान्तिनाथ तथा बायीं ओर कुन्थुनाथ प्रतिमा भी अंकित मिलती है। कायोत्सर्ग मुद्रा वाले प्रतिमा फलक मध्य प्रदेश में अहार, बजरंगगढ़, सिहोनिया, ऊन आदि में तथा पद्मासनस्थ फलक हस्तिनापुर में द्रष्टव्य हैं। निर्वाणकल्याणक-भूमि तीर्थङ्कर कुन्थुनाथ की निर्वाणभूमि सर्वश्रेष्ठ सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर की ज्ञानधरकूट भूमि है। सम्मेदशिखर से आदिनाथ, वासुपूज्य, नेमिनाथ और महावीर तीर्थङ्करों के सिवाय अन्य सभी तीर्थङ्कर निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। सर्वाधिक पवित्र भूमि होने से ही कहा जाता है कि "भाव सहित वन्दे जो कोई, तहि नरक-पशुगति नहीं होई।" -51