Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ की भाव सहित वन्दना करने से बत्तीस करोड़ प्रोषधोपवास करने का फल प्राप्त होता है। इस प्रकार भगवान् सुपार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान- ये चार कल्याणक काशी (वाराणसी) में सम्पन्न हुए और मोक्ष-कल्याणक श्री सम्मेदशिखर में हुआ। ___प्राकृत-भाषा में निबद्ध एवं आचार्य यतिवृषभ द्वारा प्रणीत तिलोयपण्णत्ती में भगवान् सुपार्श्वनाथ के जीवन पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। आचार्य समन्तभद्र ने स्वयम्भू स्तोत्र एवं आचार्य अमृतचन्द्रसूरि ने अपने लघुतत्त्व स्फोट ग्रन्थ में इनकी स्तुति की है। हरिवंशपुराण आदि में भी तीर्थङ्करों की स्तुति के क्रम में इन्हें नमस्कार किया गया है। कविवर वृन्दावनदास, बखतावर एवं पं. राजमल जैन आदि ने भगवान् सुपार्श्वनाथ की पूजा लिखकर उनके प्रति अपनी भक्ति-भावना प्रदर्शित की है। सुपासणाह चरिउ नामक ग्रन्थ में इनके जीवन का साङ्गोपाङ्ग वर्णन मिलता है। इन्हीं ग्रन्थों एवं कुछ अन्यान्य ग्रन्थों को आधार बनाकर प्रस्तुत लेख में भगवान् सुपार्श्वनाथ से सम्बन्धित विविध पहलुओं पर विचार किया गया है। -36