Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
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________________ जैन-साहित्य एवं शिल्प में तीर्थङ्कर वासुपूज्य और उनकी पञ्चकल्याणक भूमियाँ - अनूपचन्द जैन, फीरोजाबाद प्रस्तुत विषय पर लगभग 20 पृष्ठों के आलेख में भगवान् वासुपूज्य स्वामी का विस्तृत जीवन चरित्र एवं विभिन्न ग्रन्थों में जैन शिल्प के परिप्रेक्ष्य में चम्पापुर-मन्दागिरि क्षेत्र का व्यापक विवेचन किया गया है। यहाँ प्रस्तुत है इसका सार-संक्षेप। तीर्थङ्कर वासुपूज्य जीवनक्रम एक दृष्टि में भगवान् वासुपूज्य - पुष्पोत्तर विमान से चय कर माता विजयादेवी के गर्भ में आना, गर्भ कल्याणक - आषाढ कृष्ण 6, जन्म कल्याणक - फाल्गुन कृष्ण 14, स्थान - चम्पापुरी, वंश - इक्ष्वाकु, पिता - राजा वसुपूज्य, माता - पाटलदेवी (जयावती), तप कल्याणक स्थान - मन्दारगिरि पर्वत, ज्ञान कल्याणक स्थान - मनोहर उद्यान में पाटल वृक्ष के नीचे, मोक्ष प्राप्ति स्थान - मन्दारगिरि पर्वतशिखर पर अपराह्नकाल में, भगवान् वासुपूज्य का कुमार काल - 18 लाख वर्ष, आयु - 72 लाख वर्ष, शरीर की ऊँचाई - 70 धनुष, शरीर का रंग - अरुण (लाल), चिह्न - भैंसा, यक्ष का नाम - षष्णमुख यक्ष, याक्षिणी का नाम- गान्धार यक्षणी, गणधर - 6 गणधर, वासुपूज्य के प्रथम गणधर - मन्दर गणधर। पकल्याणक 1. गर्भ कल्याणक आसाढ़ वदी 6 2. जन्म कल्याणक फागुन वदी 11 3. तप कल्याणक फागुन वदी 14 4. ज्ञान कल्याणक भादों वदी 2 5. मोक्ष कल्याणक : भादों सुदी 14 पञ्च कल्याणक भूमियाँ तीर्थङ्कर वासुपूज्य स्वामी ऐसे एकमात्र तीर्थङ्कर हैं जिनके पांचों कल्याणक चम्पापुर में हुए हैं। यद्यपि गर्भ कल्याणक एवं जन्म कल्याणक चम्पानगरी या चम्पापुर में तथा तप, ज्ञान एवं मोक्ष कल्याणक मन्दारगिरि पर होने का उल्लेख मिलता है, तथापि भौगोलिक दृष्टि से तत्कालीन चम्पापुर-मन्दारगिरि एक ही क्षेत्र में था, इसलिए कहा जाता है कि पांचों कल्याणक चम्पापुर में हुए। चम्पा या चम्पापुर को प्राचीन अंग देश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। इसकी स्थिति बारह योजन लम्बे एवं पांच सौ योजन चौड़े चम्पक वन के समीप दक्षिण-पश्चिम भारत में बतलायी गयी है। 96 मील लम्बे और 36 मील चौड़े विस्तार वाले जिस चम्पापुर को तीर्थङ्कर, श्रीमान्, विद्वान्, शीलवान्, दयावान्, विनयवान्, ज्ञानवान्, विवेकवान्, ऋद्धिवान् तथा समृद्धिवान् आदि विभूतियों को जन्म देने का गौरव प्राप्त है। जिस चम्पापर -60