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શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ
કાર્તિક अनेक घटनाओं का निरूपण कर देता है यह ठीक नहीं, ये घटनायें वास्तवमें एक दूसरी से बहुत दूर दूर की हैं, और श्रेणिक-चेल्लना के विवाह सम्बन्धी वृत्तान्त तो भगवान के केवली होकर राजगृह जाने के बहुत पहले बन चुका था, इस कारण इसके यहां वर्णन का कोई प्रसंग ही नहीं था।
(२) भगवान का राजगृह से चम्पा की तरफ विहार और पृष्टचम्पा के साल-महासालकी दीक्षा बहुत पीछे की घटना है जिसे 'क' चरित्र तुरन्त लिख देता है, परन्तु इस चरित्र का सूक्ष्म कलेवर देखते यह जल्दबाजी क्षन्तव्य हो सकती है, क्योंकि बहुतसी घटनाओं का वर्णन–भार इसने अपने ऊपर रक्खा ही नहीं है।
'ख' क्षत्रियकुण्ड से और 'ग' राजगृह से भगवान को कौशाम्बी भेजता है। इसमें 'ग' का कथन हमें ठीक नहीं अँचता, राजगृह और उसके आसपास तो भगवान् वर्षों तक विहार करें और विदेह देश जो उनकी जन्मभूमि है, यों ही रह जाय और वे वासभूमि को प्रतिबोध देने चले जायें ,यह कम अँचने वाली बात है । जहां तक हम समझ पाये हैं। इन दोनों चरित्रों ने एक एक भूल कर डाली है। 'ख' ने भगवान को सीधा ब्राह्मणकुण्ड भेजने की भूल की, तो 'ग' ने राजगृह से उन्हें सीधा कौशाम्बी भेजने की। वस्तुतः भगवान् मध्यमा से राजगृह और राजगृह से ब्राह्मणकुण्ड आदि स्थानों में विचरने के बाद कौशाम्बी गये थे।
उक्त दोनों चरित्र कौशाम्बी में मृगावती तथा चण्डप्रद्योत की अंगावती प्रमुख ८ रानियों के दीक्षा लेने की बात कहते हैं, परन्तु हमारी राय में ये दीक्षायें कौशाम्बी के दूसरे समवसरण में हुई थीं। पहले समवसरण में वहां जयन्ती को दीक्षा हुई थी, ऐसा भगवतीसूत्र से ध्वनित होता है।
(३) 'क' सालमहासाल की दीक्षा के बाद कालान्तर में पिठर, गागलि की दीक्षा का प्रतिपादन करता है, परन्तु इस 'कालान्तर' का प्रमाण नहीं लिखा । 'ख' और 'ग' कौशाम्बी से भगवान को वाणिज्यग्राम आदि में ले जा कर एक ही सिलसिले में आनन्दादि दश श्रावकों के प्रतिबोध का वर्णन करते हैं। यहां 'ख' चरित्र ऐसी आन्तरकथाओं से अपना कलेवर बढाता है कि जिनका महावीरचरित्र के साथ कोई संबन्ध ही नहीं है। हमारी राय में एक ही सिलसिले में सब श्रीवकों के प्रतिबाध का निरूपण और केवल इसी के लिये भगवान को ग्राम ग्राम फिराना ठीक नहीं ऊँचा ।।
(४) 'क' ने गौतम का अष्ट्रापदगमन संबन्धी वृत्तान्त जलदी कह डाला है,
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