Book Title: Jain Satyaprakash 1936 11 12 SrNo 16 17 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti AhmedabadPage 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૩૯ મહાવીર-ચરિત્ર-મીમાંસા श्रेणिक को कैद करके कोणिक राजगृह का राजा बनता है । बाद में वह राजगृह को छोड के चम्पा को अपनी राजधानी बनाता है। हल्लविहल्ल के निमित्त कोणिक वैशाली के चेटक राज से लटता है। हल्लविहल्ल दीक्षा लेते हैं। (१६) 'ग' के अनुसार भगवान् चम्पा जाते हैं, काली आदि श्रेणिक पत्नियां भगवान् के पास दीक्षा लेती हैं। (१७) 'ग' कोणिक की मृत्यु के बाद मगध के राज्याधिकार उदायी को प्राप्त होते हैं । वह महावीर का देशनामृत पी कर शान्त होता है। (१८) 'ग' के अनुसार भगवान् अपापा जाते हैं, पुण्यपाल मंडलिक के स्वप्नों का फल कहते हैं, वह दीक्षा लेता है और मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान् पञ्चम काल के भाव कहते हैं, और गौतम को बाहर गांव भेज कर स्वयं निर्वाग प्राप्त होते हैं। ६ विहारक्रम पर विचारणा ऊपर दिये हुए विहारक्रम से पाठकगण समझ सकते हैं कि इन चरित्रों के लेखक पूर्वाचार्यों के पास चरित्र संबन्धी कोई निश्चित क्रम नहीं था । एक चरित्र केवलज्ञान के बाद भगवान को वर्षों तक विदेह और वसभूमि में विहार कराता है, तब दूसरा उन्हें मगध भूमि में ले जाकर वर्षों तक वहीं धर्मप्रचार करवाता है। इनमें वर्णित विहार चर्या वस्तुतः इनके लेखकों की पसंदगी का विषय है। विषयनिरूपण में लेखकों ने किसी प्रकार का पारतन्त्र्य नहीं माना, और न एक व्यवस्थित घटनाक्रम का ही ख्याल रक्खा । ' वे एक ऐतिहासिक महापुरुष का जावन-चरित्र लिख रहे हैं ' इस बात का तो उन्होंने शायद ही विचार भी किया हो । हमारे इस कथन की सत्यता उक्त विषयक्रम की निम्न लिखित विचारणा से समझ में आ सकेगी। (१) 'ख' चरित्र का भगवान् को मध्यमा से राजगृह न ले जाकर ब्राह्मणकुण्ड की तरफ ले जाना ठीक नहीं अँचता । जहाँ तक केवलज्ञान का सम्बन्ध ऋजुवालुका के तट से है, महावीर वहां से मध्यमा होकर ब्राह्मणकुण्ड नहीं जा सकते थे, क्योंकि लाखों मनुष्यों की वसतिवाला राजगृह उनके रास्ते में पडता था । और श्रेणिक चेल्लना जैसे उनके सांसारिक संबन्धी वहां के राजा रानी थे। इस दशा में महावीर राजगृह को बीच में छोड कर सीधे ब्राह्मणकुण्ड पहुंच जायें यह बात मानने योग्य नहीं ठहरती । 'क' तथा 'ग' चरित्र भगवान को राजगृह की तरफ ले जाते हैं यह तो ठीक है, परन्तु 'ग' चरित्र बार बार राजगृह की तरफ विहार करा कर एक ही सिलसिले में For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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