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जैन श्रुत
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इन्द्रियों तथा मन द्वारा होने वाले बोध को मतिज्ञान कहते हैं। इसे अन्य दार्शनिक 'प्रत्यक्ष' कहते हैं। जबकि जैन परम्परा में इसे 'व्यावहारिक प्रत्यक्ष' कहा जाता है । इन्द्रिय-मन-निरपेक्ष एवं सीधा आत्मा द्वारा न होने के कारण मतिज्ञान वस्तुतः परोक्ष ही है ।
दूसरा श्रुतज्ञान है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, श्रुतज्ञान के मुख्य दो भेद हैं : द्रव्यश्रुत और भावश्रुत । भावश्रुत आत्मोपयोगरूप अर्थात् चेतनारूप होता है। द्रव्यश्रुत भावश्रुत की उत्पत्ति में निमित्तरूप व जनकरूप होता है एवं भावश्रुत से जन्य भी होता है। यह भाषारूप एवं लिपिरूप है। कागज, स्याही, लेखनी, दावात, पुस्तक इत्यादि समस्त श्रुतसाधन द्रव्यश्रुत के ही अन्तर्गत हैं।
श्रुतज्ञान के परस्पर विरोधी सात युग्म कहे गये हैं अर्थात् देववाचक ने श्रुतज्ञान के सब मिलाकर चौदह भेद बताए हैं। इन चौदह भेदों में सब प्रकार का श्रुतज्ञान समाविष्ट हो जाता है । यहाँ निम्नोक्त छ: युग्मों की चर्चा विवक्षित है :
१. अक्षरश्रुत व अनक्षरश्रुत, २. सम्यक्श्रुत व मिथ्याश्रुत, ३. सादिकश्रुत व अनादिकत, ४. सपर्यवसित अर्थात् सान्तश्रुत व अपर्यवसित अर्थात् अनन्तश्रुत, ५. गमिकश्रुत व अगमिकश्रुत, ६. अंगप्रविष्टश्रुत व अनंगप्रविष्ट अर्थात् अंगबाह्यश्रु त । अक्षरश्रुत व अनक्षरश्रुत :
इस युग्म में प्रयुक्त 'अक्षर' शब्द भिन्न-भिन्न अपेक्षा से भिन्न अर्थ का बोध कराता है। अक्षरश्रुत भावरूप है अर्थात् आत्मगुणरूप है । उसे प्रकट करने में तथा उसकी वृद्धि एवं विकास करने में जो अक्षर अर्थात् ध्वनियाँ, स्वर अथवा व्यञ्जन निमित्तरूप होते हैं उनके लिए 'अक्षर' शब्द का प्रयोग होता है । ध्वनियों के संकेत भी 'अक्षर' कहलाते हैं। संक्षेप में अक्षर का अर्थ है-अक्षरात्मक ध्वनियाँ तथा उनके समस्त संकेत । ध्वनियों में समस्त स्वर-व्यञ्जन समाविष्ट होते हैं । संकेतों में समस्त अक्षररूप लिपियों का समावेश होता है ।
___ आज के इस विज्ञानयुग में भी अमुक देश अथवा अमुक लोग अपनी अभीष्ट अमुक प्रकार की लिपियों अथवा अमुक प्रकार के संकेतों को ही विशेष प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं तथा अमुक प्रकार की लिपियों व संकेतों को कोई महत्त्व नहीं देते, जब कि आज से हजारों वर्ष पहले जैनाचार्यों ने श्रुत के एक भेद अक्षरश्रुत में समस्त प्रकार की लिपियों एवं अक्षर-संकेतों को समाविष्ट किया था । प्राचीन जैन परम्परा में भाषा, लिपि अथवा संकेतों को केवल विचार-प्रकाशन के वाहन के रूप
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