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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
में ही स्वीकार किया गया है । उन्हें ईश्वरीय समझ कर किसी प्रकार की विशेष पूजा-प्रतिष्ठा नहीं दी गई है । इतना ही नहीं, जैन आगम तो यहाँ तक कहते हैं। कि चित्र-विचित्र भाषाएँ, लिपियाँ अथवा संकेत मनुष्य को वासना के गर्त में गिरने से नहीं बचा सकते । वासना के गर्त में गिरने से बचाने के असाधारण साधन विवेकयुक्त सदाचरण, संयम, शील, तप इत्यादि हैं । जैन परम्परा एवं जैन शास्त्रों में प्रारम्भ से ही यह घोषणा चली आती है कि किसी भी भाषा, लिपि अथवा संकेत द्वारा चित्त में जड़ जमाये हुए राग-द्वेषादिक की परिणति को कम करनेवाली विवेकयुक्त विचारधारा ही प्रतिष्ठायोग्य है । इस प्रकार की मान्यता में ही अहिंसा की स्थापना व आचरण निहित है । व्यावहारिक दृष्टि से भी इसी में मानवजाति का कल्याण है । इसके अभाव में विषमता, वर्गविग्रह व क्लेशवर्धन की ही सम्भावना रहती है ।
जिस प्रकार अक्षरश्रुत में विविध भाषाएँ, विविध लिपियाँ एवं विविध संकेत समाविष्ट हैं उसी प्रकार अनक्षरश्रुत में श्रूयमाण अव्यक्त ध्वनियों तथा दृश्यमान शारीरिक चेष्टाओं का समावेश किया गया है । इस प्रकार की ध्वनियाँ एवं चेष्टाएँ भी अमुक प्रकार के बोत्र का निमित्त बनती हैं । यह पहले ही कहा जा चुका है कि बोध के समस्त निमित्त, श्रुत में समाविष्ट हैं । इस प्रकार कराह, चीत्कार, निःश्वास, खंखार, खांसी, छींक आदि बोध-निमित्त संकेत अनक्षरश्रुत में समविष्ट हैं । रोगी की कराह उसकी व्यथा की ज्ञापक होती है । चीत्कार व्यथा अथवा वियोग की ज्ञापक हो सकती है । निःश्वास दुःख एवं विरह का सूचक है । छींक किसी विशिष्ट संकेत की सूचक हो सकती है । निन्दा अथवा तिरस्कार की भावना प्रकट कर सकती है अथवा का संकेत कर सकती है । इसी प्रकार आँख के प्रकट करते हैं ।
थूकने की चेष्टा
किसी अन्य तथ्य इशारे भी विभिन्न चेष्टाओं को
एक पुरुष अपनी परिचित एक स्त्री के घर में थी । उसे देख कर स्त्री ने गाली देते हुए जोर से लगाया । कपड़े पर भरे हुए मैले हाथ की पाँचों उंगलिया उठ का पुरुष ने यह अर्थ निकाला कि कृष्णपक्ष की पंचमी के पुरुष का निकाला हुआ यह अर्थ ठोक था । उस स्त्री ने लिए धप्पा लगाया था ।
घुसा। घर में स्त्री की सास उसकी पीठ पर एक धप्पा
आई । इस संकेत
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इस प्रकार अव्यक्त ध्वनियाँ एवं विशिष्ट प्रकार की चेष्टाएँ भी अमुक प्रकार के बोध का निमित्त बनती हैं । जो लोग इन ध्वनियों एवं चेष्टाओं का रहस्य समझते हैं उन्हें इनसे अमुक प्रकार का निश्चित बोध होता है ।
दिन फिर आना । इसी अर्थ के संकेत के
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