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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लगाया गया है ।' यही कारण है कि सूत्रकृतांग को पूर्वोक्त गाथाओं में बताया गया है कि ये महापुरुष सिद्धिप्राप्त हैं ।
ऋषिभाषित में जिन अर्हद्रूप ऋषियों का उल्लेख है उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं :
(१) असित देवल, (२) अंगरिसि-अंगिरस-भारद्वाज, (३) महाकश्यप, (४) मंखलिपुत्त, (५) जण्णवक्क-याज्ञवल्क्य, (६) बाहुक, (७) मधुरायगमाथुरायण, (८) सोरियायण, (९) वरिसव कण्ह, (१०) आरियायण, (११) गाथापतिपुत्र तरुण, (१२) रामपुत्र, (१३) हरिगिरि, (१४) मातंग, (१५) वायु, (१६) पिंग माहणपरिव्वायअ-ब्राह्मणपरिव्राजक, (१७) अरुण महासाल, (१८) तारायण, (१९) सातिपुत्र-शाक्यपुत्र बुद्ध, (२०) दीवायण-द्वैपायन, (२१) सोम, (२२) यम, (२३) वरुण, (२४) वैश्रमण ।।
इनमें से असित, मंखलिपुत्त, जण्णवक्क, बाहुक, मातंग, वायु, सातिपुत्र बुद्ध, सोम, यम, वरुण, वैश्रमण व दीवायण-इन नामों के विषय में थोड़ा-बहुत वर्णन उपलब्ध होता है। असित, बाहुक, द्वैपायन, मातंग व वायु के नाम महाभारत आदि वैदिक ग्रन्थों में मिलते हैं तथा उनमें इनका कुछ वृत्तान्त भी आता है । मंखलिपुत्त श्रमणपरम्परा के इतिहास में गोशालक के नाम से प्रसिद्ध है । इसे जैन आगमों व बौद्ध पिटकों में मंखलिपुत्त गोसाल कहा गया है। जण्णवक्क याज्ञवल्क्य ऋषि का नाम है जो विशेषतः बृहदारण्यक उपनिषद् में प्रसिद्ध है। सातिपुत्त बुद्ध शाक्यपुत्र गौतम बुद्ध का नाम है ।
प्राचीन व अर्वाचीन अनेक जैन ग्रन्थों में मंखलिपुत्र गोशालक की खूब हँसी उड़ाई गई है। शाक्यमुनि बुद्ध का भी पर्याप्त परिहास किया गया है।। इनमें जैनश्रुत के अतिरिक्त अन्य समस्त शास्त्रों को मिथ्या कहा गया है । जिनदेव के अतिरिक्त अन्य समस्त देवों को कुदेव तथा जैनमुनि के अतिरिक्त अन्य समस्त मुनियों को कुगुरु कहा गया है। जबकि ऋषिभाषित का संकलन करनेवालों ने जैनसम्प्रदाय के लिंग तथा कर्मकाण्ड से रहित मंखलिपुत्र, बुद्ध, याज्ञवल्क्य आदि को 'अर्हत्' कहा है तथा उनके वचनों का संकलन किया है। यही नहीं, इस ग्रन्थ को आगमकोटि का माना है । तात्पर्य यह है कि जिनकी दृष्टि सम्यक् है उनके कैसे भी सरल वचन सम्यक्श्रुतरूप हैं तथा जिनकी दृष्टि शम-संवेगादि गुणों से रहित है उनके भाषा, काव्य, रस व गुण की दृष्टि से श्रेष्ठतम वचन भी मिथ्याश्रुतरूप हैं । वेद, महाभारत आदि ग्रन्थों को मिथ्याश्रुतरूप मानने वाले आचार्यों
१. अध्ययन २९ व ३१ ।
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