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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
उदकज्ञात:
बारहवें अध्ययन उदकज्ञात में गटर के गन्दे पानी को साफ करने की पद्धति बताई हुई हैं। यह पद्धति वर्तमानकालीन फिल्टरपद्धति से मिलती-जुलती है। इस कथानक का आशय यह है कि पुद्गल के अशुद्ध परिणाम से घृणा करने की आवश्यकता नहीं है।
तेरहवें अध्ययन में नंदमणियार की कथा आती है। इसमें लोगों के आराम के लिए नंदमणियार द्वारा पुष्करिणी बनवाने की कथा अत्यन्त रोचक है और साथ-साथ चार उद्यान बनवाकर उनमें से एक उद्यान में चित्रसभा तथा लोगों के श्रम को दूर करने के लिए संगीतशाला और दूसरे में जलयंत्रों से सुशो. भित पाकशाला, तीसरे उद्यान में एक अच्छा बड़ा औषधालय बनवाया गया था जिसमें अच्छे वैद्य भी रखे गए थे और चौथे उद्यान में आमजनता के लिए एक आलंकारिक सभा बनवाई गई थी। इस कथा में रोगों के नाम तथा उनके उपचार के लिए विविध प्रकार के आयुर्वेदिक उपाय भी सूचित किए गए हैं।
चौदहवें तेयलि अमात्य के अध्ययन में जो बातें मिलती है वे आवश्यक-चूर्णि में भी बताई गई है। विविध मतानुयायो :
नंदीफल नामक पंद्रहवें अध्ययन में एक संघ के साथ विविध मत वालों के प्रवास का उल्लेख है । उन मत वालों के नाम ये हैं :
चरक-त्रिदंडी अथवा कछनीधारी-कौपीनधारी-तापस । चीरिक-गली में पड़े हुए चीथड़ों से कपड़े बनाकर पहननेवाले संन्यासी। चर्मखंडिक-चमड़े के वस्त्र पहनने वाले अथवा चमड़े के उपकरण रखने
वाले संन्यासी। भिच्छुड-भिक्षुक अथवा बौद्धभिक्षुक । पंडुरग-शिवभक्त अर्थात् शरीर पर भस्म लगाने वाले । गौतम-अपने साथ बैल रखने वाले भिक्षुक । गोबती-रघुवंश में वर्णित राजा दिलीप की भाँति गोव्रत रखने वाले । गृहधर्मी-गृहस्थाश्रम को ही श्रेष्ठ मानने वाले । धर्मचिन्तक-धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाले। अविरुद्ध-किसी के प्रति विरोध न रखने वाले अर्थात् विनयवादी। विरुद्ध-परलोक का विरोध करने वाले अथवा समस्त मतों के साथ विरोध
रखने वाले। वृद्ध–वृद्धावस्था में में संन्यास लेने में विश्वास रखने वाले । श्रावक-धर्म का श्रवण करने वाले ।
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