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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
समवाय के उल्लेखानुसार सात वर्ग नहीं। उपलब्ध अन्तकृतदशा के प्रथम वर्ग में निम्नोक्त दस अध्ययन हैं :____ गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, थिमिअ, अयल, कंपिल्ल, अक्षोभ, पसेणई
और विष्णु । द्वारका-वर्णन :
प्रथम वर्ग में द्वारका का वर्णन है। इस नगरी का निर्माण धनपति की योजना के अनुसार किया गया। यह किस प्रदेश में थी, इसका सूत्र में कोई उल्लेख नहीं है। द्वारका के उत्तर-पूर्व में रेवतक पर्वत, नन्दनवन एवं सुरप्रिय यक्षायतन होने का उल्लेख है। राजा का नाम कृष्ण वासुदेव बताया गया है । कृष्ण के अधीन समुद्र-विजय आदि दस दशार्ह, बलदेव आदि पांच महावीर, प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन करोड़ कुमार, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजा, रुक्मिणी आदि सोलह हजार देवियाँ-रानियाँ, अनंगसेना आदि सहस्रों गणिकाएं व अन्य अनेक लोग थे। यहाँ द्वारका में रहने वाले अन्धकवृष्णि राजा का भी उल्लेख आता है ।
अन्धकवृष्णि के गौतम आदि दस पुत्र संयम ग्रहण कर उसका पूर्णतया पालन करते हुए सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन कर अन्तकृत अर्थात् मुक्त हुए। ये दसों मुनि शत्रुञ्जय पर्वत पर सिद्ध हुए।
द्वितीय वर्ग में इसी प्रकार के अन्य दस नाम हैं।
गजसुकुमाल
तृतीय वर्ग में तेरह नाम हैं। नगर भद्दिलपुर है। गृहपति का नाम नाग व उसकी पत्नी का नाम सुलसा है। इसमें सामायिक आदि चौदह पूर्त के अध्ययन का उल्लेख है। सिद्धिस्थान शत्रुजय ही है। इन तेरह नामों में गजसुकुमाल मुनि का भी समावेश है। कृष्ण के छोटे भाई गज की कथा इस प्रकार है :
छः मुनि थे। वे छहों समान आकृतिवाले, समान वयवाले एवं समान वर्णवाले थे। वे दो-दो की जोड़ी में देवकी के यहाँ भिक्षा लेने गये । जब वे एक बार, दो बार व तीन बार आये तो देवकी ने सोचा कि ये मुनि बार-बार क्यों आते हैं ? इसका स्पष्टीकरण करते हुए उन मुनियों ने कहा कि हम बार-बार नहीं आते किन्तु हमसबकी समान आकृति के कारण तुम्हें ऐसा ही लगता है। हम छहों सुलसा के पुत्र हैं। मुनियों को यह बात सुन कर देवकी को कुछ स्मरण हुआ। उसे याद आया कि पोलासपुर नामक गाँव
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