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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
• तपोमय जीवन का सुन्दर चित्रण किया है । इनमें से धन्यकुमार का वर्णन विशेष विस्तृत है ।
धन्यकुमार काकंदी नगरी की भद्रा सार्थवाही का पुत्र था । भद्रा के पास अपरिमित धन तथा अपरिमित भोग-विलास के साधन थे । उसने अपने सुयोग्य पुत्र का लालन-पालन बड़े ऊँचे स्तर से किया था । धन्यकुमार भोग-विलास की सामग्री में डूब चुका था । एक दिन भगवान् महावीर की दिव्य वाणी सुनकर उसके मन में वैराग्य की भावना जाग्रत हुई और तदनुसार वह अपने विपुल वैभव् का त्याग कर मुनि बन गया ।
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मुनि बनने के बाद धन्य ने जो तपस्या की वह अद्भुत एवं अनुपम है । तपोमय जीवन का इतना सुन्दर सर्वांगीण वर्णन श्रमणसाहित्य में तो क्या, सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ कुमारसंभव में पार्वती की तपस्या महत्वपूर्ण होते हुए भी धन्य मुनि की तपस्या के उससे अलग ही प्रकार का है ।
वर्णन किया है वह समकक्ष नहीं है
का जो वर्णन के
धन्यमुनि अपनी आयु पूर्ण करके सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए। वहाँ से च्युत होकर मनुष्य जन्म पाकर तपःसाधना द्वारा सिद्ध-बुद्धमुक्त होंगे।
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