Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 284
________________ अनुत्तरोपपातिकदशा २६७. सूत्र में इसके तीन वर्गं, दस अध्ययन व दस उद्देशनकाल बताये गये हैं । नन्दी सूत्र में तीन वर्ग व तीन ही उद्देशनकाल निर्दिष्ट हैं । इस प्रकार इन सूत्रों के उल्लेख में परस्पर भेद दिखाई देता है । इस भेद का कारण वाचना-भेद होगा । राजवार्तिक आदि अचेलकपरम्परासम्मत ग्रन्थों में भी अनुत्तरोपपातिकदशा का परिचय मिलता है । इनमें इसके तीन वर्गों का कोई उल्लेख नहीं है । ऋषिदास आदि से सम्बन्धित दस अध्ययनों का निर्देश है । स्थानांग में दस अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं : ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, संस्थान, शालिभद्र, आनन्द, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्तक । स्थानांग व राजवार्तिक में जिन नामों का उल्लेख है उनमें से कुछ नाम उपलब्ध अनुत्तरौपपातिक में मिलते हैं । जैसे वारिषेण (राजवार्तिक ) नाम प्रथम वर्ग में है । इसी प्रकार धन्य, सुनक्षत्र तथा ऋषिदास ( स्थानांग व राजवार्तिक ) नाम तृतीय वर्ग में हैं । अन्य नामों की अनुपलब्धि का कारण वाचनाभेद हो सकता है । उपलब्ध अनुत्तरोपपातिकदशा तीन वर्गों में विभक्त है । प्रथम वर्ग में १० अध्ययन हैं, द्वितीय वर्ग में १३ अध्ययन हैं और तृतीय वर्ग में १० अध्ययन हैं । इस प्रकार तीनों वर्गों की अध्ययन संख्या ३३ होती है । प्रत्येक अध्ययन में एक-एक महापुरुष का जीवन वर्णित है । जालि आदि राजकुमार : प्रथम वर्ग में जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त; लष्टदंत. वेहल्ल, वेहायस और अभयकुमार इन दस राजकुमारों का जीवन दिया गया है । सुधर्मा ने अपने शिष्य जम्बू को उक्त दस राजकुमारों के जन्म, नगर, मातापिता आदि का विस्तृत परिचय करवाकर उनके त्याग व तप का सुन्दर ढंग से वर्णन किया है और बताया है कि ये दसों राजकुमार मनुष्य-भव पूर्ण करके कौन-कौन से अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए हैं तथा देवयोनि पूर्ण होने पर वहाँ से च्युत होकर कहां जन्म लेंगे एवं किस प्रकार सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे । दीर्घसेन आदि राजकुमार : द्वितीय वर्ग में दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढ़ दन्त, शुद्ध दन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन और पुष्पसेन -- इन तेरह राजकुमारों के जीवन का वर्णन जालिकुमार के जीवन की ही भांति संक्षेप में किया गया है । ये भी अपनी तपःसाधना द्वारा पाँच अनुत्तर विमानों में गये हैं । वहाँ से च्युत होकर मनुष्यजन्म पाकर सिद्ध - बुद्ध-मुक्त होंगे । धन्यकुमार : तृतीय वर्ग में धन्यकुमार, सुनक्षत्रकुमार, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र, चन्द्रिका पृष्टिमातृक, पेढालपुत्र, पोट्टिल्ल और वेहल्ल— इस दस कुमारों के भोगमय ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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