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द्वादश प्रकरण
विपाकसूत्र
विपाकसूत्र' के प्रारम्भ में ही भगवान महावीर के शिष्य सुधर्मा स्वामी एवं उनके शिष्य जम्बू स्वामी का विस्तृत परिचय दिया हुआ है । साथ हो यह प्रश्न किया गया है कि भगवान महावीर ने दसवें अंग प्रश्नव्याकरण में अमुक-अमुक बातें बताई हैं तो इस ग्यारहवें अंग विपाकसूत्र में क्या-क्या बातें बताई हैं ? इसका उत्तर देते हुए सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि भगवान महावीर ने इस श्रुत के दो श्रुतस्कन्ध बताये हैं : एक दुःखविपाक व दूसरा सुखविपाक । दुःखविपाक के दस प्रकरण हैं । इसी प्रकार सुखविपाक के भो दस प्रकरण हैं। यहाँ इन सब प्रकरणों के नाम भी बताये हैं। इनमें आनेवाली कथाओं के अध्ययन से तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति, रीतिरिवाज, जीवन-व्यवस्था आदि का पता लगता है।
प्रारम्भ में आनेवाला सुवर्मा व जम्बू का वर्णन इन दोनों महानुभावों के अतिरिक्त किसी तीसरे हो पुरुष द्वारा लिखा गया मालम होता है। इससे यह
१. (अ) अभयदेवकृत वृत्तिसहित-आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२०;
धनपत सिंह, कलकत्ता, सन् १८७६; मुक्तिकमलजनमोहनमाला, बड़ौदा,
सन् १९२०. (आ) प्रस्तावना आदि के साथ-पी. एल. वैद्य, पूना, सन् १९३३. (इ) गुजराती अनुवाद सहित-जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर,
वि. सं. १९८७. (ई) हिन्दी अनुवादसहित-मुनि आनन्दसागर, हिन्दी जैनागम प्रकाशक
सुमति कार्यालय, कोटा, सन् १९३५; अमोलक ऋषि हैदराबाद, __वी. सं. २४४६. (उ) हिन्दो टोकासहित--ज्ञानमुनि, जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लुधियाना,
वि. सं. २०१०. (ऊ) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी-गुजरातो अनुवाद के साथ-- मुनि
घासीलाल, जैनशास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९५९. (ऋ) गुजराती छायानुवाद--गोपालदास जीवाभाई पटेल, जैन साहित्य
प्रकाशन समिति, अहमदाबाद, सन् १९४०.
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