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व्याख्याप्रज्ञप्ति
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श्रमणोपासक को अपने धर्माचार्य भगवान् महावीर को वंदन करने जाते हुए देखा एवं उसे मार्ग में रोककर पूछा कि तेरे धर्माचार्य धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय - इन पांच अस्तिकायों की प्ररूपणा करते हैं, यह कैसे ? उत्तर में मद्रुक ने कहा कि जो वस्तु कार्य करती हो उसे कार्य द्वारा जाना जा सकता है तथा जो वस्तु वैसी न हो उसे हम नहीं जान सकते । इस प्रकार धर्मास्तिकायादि पांच अस्तिकायों को मैं नहीं जानता अतः देख नहीं सकता। यह सुनकर उन अन्यतीथिकों ने कहा कि अरे मद्रुक ! तू कैसा श्रमणोपासक है कि इन पांच अस्तिकायों को भी नहीं जानता । मद्रुक ने उन्हें समझाया कि जैसे वायु के स्पर्श का अनुभव करते हुए भी हम उसके रूप को नहीं देख सकते, सुगन्ध अथवा दुर्गन्ध को सूंघते हुए भी उसके परमाणुओं को नहीं देख सकते, अरणि की लकड़ी में छिपी हुई अग्नि को जानते हुए भी उसे आँखों से नहीं देख सकते, समुद्र के उस पार रहे हुए अनेक पदार्थों को देखने में समर्थ नहीं होते उसी प्रकार छद्मस्थ मनुष्य पंचास्तिकाय को नहीं देख सकता । इसका कार्य यह कदापि नहीं कि उसका अस्तित्व ही नहीं । यह सुनकर कालोदायी आदि चुप हो गए । भगवान् महावीर ने श्रमणों के सामने मद्रुक श्रमणोपासक के इस कार्य की बहुत प्रशंसा की ।
पुद्गल-ज्ञान
आठवें उद्देशक में यह बताया गया है कि सावधानी पूर्वक चलते हुए भावितात्मा अनगार के पांव के नीचे मुर्गी का बच्चा, बतख का बच्चा अथवा चींटी या सूक्ष्म कीट आकर मर जाय तो उसे ईर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी क्रिया नहीं । इसी उद्देशक में इस विषय की भी चर्चा है कि छद्मस्थ परमाणुपुद्गल को जानता व देखता है अथवा नही ? उत्तर में भगवान् ने बताया है कि कोई छद्मस्थ परमाणुपुदगल को जानता है किन्तु देखता नहीं, कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं । इस प्रकार द्विप्रादेशिक स्कन्ध से लेकर असंख्येय प्रादेशिक स्कन्ध तक समझना चाहिए । अनन्त प्रादेशिक स्कन्ध को कोई जानता है किन्तु देखता नहीं, कोई जानता नहीं परन्तु देखता है तथा कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं । अवधिज्ञानी तथा केवली के विषय में भी की गई है। क्या अर्थ है, इसके सम्बन्ध में पहले ज्ञान दर्शन की चर्चा प्रकाश डाला जा चुका है ।
इसी प्रकार की चर्चा यहां जानने व देखने का
के प्रसंग पर पर्याप्त
१ कषायजन्य प्रवृत्ति से साम्परायिक कर्म का बंध होता है जिससे भवभ्रमण
करना पड़ता है ।
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